दी प्रणाम, मेरी उम्र 21 वर्ष है, इंजीनियरिंग फाइनल ईयर का स्टूडेंट हूँ। मैं “काम विकार” और इससे सम्बन्धित चिंतन से कैसे मुक्ति पाऊँ? कृपया बताएं…साधना पथ पर आगे बढ़ते हुए जीवन कैसे सफल बनाऊं?

दी प्रणाम, मेरी उम्र 21 वर्ष है, इंजीनियरिंग फाइनल ईयर का स्टूडेंट हूँ। मैं “काम विकार” और इससे सम्बन्धित चिंतन से कैसे मुक्ति पाऊँ? कृपया बताएं…साधना पथ पर आगे बढ़ते हुए जीवन कैसे सफल बनाऊं?*

उत्तर – आत्मीय भाई, *यह एक कॉमन समस्या है* जो किशोरावस्था से युवावस्था तक लगभग अधिकतर लोगों को साथ रहती है। कोई कोई व्यक्ति/महिलाएं तो ताउम्र इससे ग्रसित होकर अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं।

किसी भी व्यसन से या काम वासना से जबरजस्ती मुक्ति नहीं पाई जा सकती। जिससे ज़बरन मुक्त होना/दमन करना चाहोगे वो और ज्यादा बलवती होकर कई मनोरोग को जन्म देगी। अतः यदि किसी चीज़/आदत/व्यसन को छोड़ना है तो उससे श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य हेतु जुनून रखना होगा और उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील रहना चाहिए…

👉🏼 *उदाहरण* – किसी गरीब व्यक्ति से सायकिल छोड़ने को कहोगे/या मांगोगे तो वो आपका सर फोड़ देगा। लेकिन यदि सायकिल के बदले मोटर सायकिल या कार ऑफर करोगे तो सहर्ष साइकिल छोड़ देगा। बचपन में चमकीले पत्थर का आकर्षण किसी बहुमूल्य वस्तु से कम न था, लेकिन समझ बढ़ी और उससे बहुमूल्य चीज़ मिली तो चमकदार पत्थर सहज़ ही छूट गये। इसी तरह बौद्धिक श्रेष्ठ कार्य करने वाले व्यक्ति कभी *काम विकार* या *काम चिंतन* से ग्रसित नहीं होते। क्योंकि श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य में केंद्रित होते हैं। इसी तरह सच्चा भक्त भी कभी *काम भावना ग्रस्त* नहीं होता क्योंकि वो भी आत्मकेंद्रित/भगवान की भक्ति में खोया होता है।

👉🏼 मनुष्य को जिस कार्य को करने से सबसे ज्यादा रोका जाता है, वह उसी ओर ज्यादा आकृष्ट होता है।

 (एक बार बड़े पार्क में फ़्रायड का बच्चा शाम को गुम गया, पत्नी परेशान हो गयी। तो फ़्रायड ने पत्नी से पूँछा ये बताओ बच्चे को तुमने पार्क में कहां जाने से मना किया था। पत्नी ने कहा फाउंटेन के पास जाने से रोका था। फ़्रायड ने कहा वो 100% वहीं मिलेगा। मनुष्य की सहज़ प्रवृत्ति है जिसे बल देकर रोकोगे वो जरूर करेगा। बच्चा वहीं मिला)

घर बाहर और साधु समाज में सबसे ज्यादा काम वासना को रोकने पर बल दिया जाता है, इसलिए बालक-बालिका इस ओर सबसे ज्यादा आकृष्ट होते है, क्योंकि इसे जानने की उत्सुकता बढ़ती है। हर तरफ मिलने वाली भारी भरकम सीख *आपको काम चिंतन नहीं करना चाहिए* ने लोगों पर उल्टा असर कर दिया है। अब केवल लोग इसी *काम विकार के चिंतन में* उलझ गए हैं। पुस्तक *आध्यात्मिक काम विज्ञान* में  इसे गुरुदेब ने विस्तार से समझाया है। काम वासना को उतनी ही छोटी जगह जीवन मे मिलना चाहिए, जितनी उसे मिलना चाहिए। जगत के सभी जीवों के साथ ऐसा ही है। मनुष्य को छोड़कर कोई जीव *काम चिंतन* नहीं करता न ही किसी अन्य जीव का सोच हर वक्त अटका हुआ होता है कि *कौन नर है या कौन मादा है*। आखिर हमने अपने शरीर के सिर्फ एक अंग जननेन्द्रिय को इतना महत्तव क्यों दिया? जो कि इस योग्य भी नहीं है।

मनुष्य को सब जीवों में जो दिमाग़ सर्वश्रेष्ठ बनाता है, महत्त्व तो उसे ज्यादा दिया जाना चाहिए। जिस आत्मा के कारण शरीर मे जीवन है महत्त्व तो इसे सबसे सबसे ज्यादा मिलना चाहिए।

👉🏼 जिस ओर हमारा ध्यान होता है, कल्पनाएं और विचार चुम्बक की तरह हमें उसी ओर तदनुस्वरूप बनाती चली जाती है। जैसे गुरुकुल में बच्चों का ध्यान ज्ञान हेतु आकृष्ट किया जाता है तो वो ज्ञान प्राप्ति को एकरूप हो जुट जाता है। साइंटिस्ट रिसर्च की ध्यान केंद्रित कर उसमें ही खोए रहते हैं। भक्त भक्ति में खोए रहते हैं। जिसे जैसा बालक बनाना है वैसा वातावरण और उसका ध्यान आकृष्ट करने हेतु निर्मित कर दो।

श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य न हुआ और आध्यात्मिक दृष्टिकोण न हुआ  तो भटकाव की समुचित व्यवस्था कलियुग में है। टीवी, सीरियल, फ़िल्म, विज्ञापन, न्यूज़ पेपर, फ़िल्मी गाने सर्वत्र *काम वासना* को उद्दीप्त/भड़काने और ध्यान आकर्षित करने हेतु पर्याप्त व्यवस्था है। अतः चाहे अनचाहे यह आज के किशोरों और युवाओं को *काम विकार* की ओर आकृष्ट कर रहा है। निरन्तर इन सबको देखने से मानसिक *काम और भोग* से तदनुस्वरूप बना रहा है।

हमें स्वयं जैसा बनना है वैसा ध्यान हमें करना होगा। किसी चीज़ से ध्यान हटाना तब तक सम्भव नहीं जब तक ध्यान किसी श्रेष्ठ की ओर न लगाया जाय। विचार रोकना सम्भव नहीं लेकिन विचार मोड़ना, उसे सही दिशा धारा देना सम्भव है।

*काम-वासना पर विजय पाने हेतु निम्नलिखित प्रयास करें* –

1- याद रखें मन, प्राण और वीर्य एक ही सर्किट से जुड़े सम्बन्ध है। मन के नियन्त्रण से भी प्राण चार्ज होता है। वासना के नियंत्रण से प्राण चार्ज होता है। दोनों ही विधियों से ऊर्जा निम्न केंद्रों से ऊर्ध्व गमन करती हैं। योग-प्राणायाम-ध्यान-जप-स्वाध्याय से स्वयं पर और अपने मन पर नियंत्रण और प्रबंधन की कुशलता आती है।

2- ईश्वर की भक्ति काम वासना को नियंत्रित करने की अचूक औषधि है। संस्कृत मन्त्रो का सस्वर ज़ोर ज़ोर उच्चारण करके कुछ देर बोलें। भजन गुनगुनाओ और भजन सुनो। प्रेरणादायक प्रज्ञागीत सुनो। भजन भाव शुद्धि का सबसे बढ़िया माध्यम है।

3- मातृ भाव साधना, मां आद्यशक्ति गायत्री और मां भगवती को हर स्त्री में देखना। यज्ञ पिता और परम पूज्य गुरुदेव को हर पुरुष में देखना। केवल अग्नि को साक्षी मानकर जिसे अर्धांग या अर्धागिनी स्वीकार करेंगे केवल उसी के लिए प्रेम भावना विकसित करेंगे।

4- कामोत्तेजक टीवी सीरियल, फ़िल्म, गाने, सीरियल, पोर्न वीडियो, गेम्स, शराब, मादक वस्तुओं, अश्लील साहित्य और कामुक कल्पनाओं से स्वयं को दूर रखें।  याद रखो, मन्दिर में जाकर भक्ति जगेगी ही, और बार व फ़िल्म के वातावरण में काम भावना जगेगी ही। अच्छी पुस्तकें प्रकाशित करेंगी और अच्छाई के लिए प्रेरित करेगी, और इसी तरह अश्लील पुस्तके वासना के दलदल में घसीटेगा ही।

5- खाली मन शैतान का घर होता है, स्लाइड की तरह नीचे आसुरी प्रवृत्ति है और ऊपर दैवीय प्रवृत्ति। जब हम साधना करते है तो ऊर्जा प्रवाह ऊर्ध्व/ऊपर की ओर गमन करता है और हमारे अंदर दैवीय शक्तियों को जागृत करता है। हम ऊपर के शक्ति केंद्रों को जागृत न कर पाएं इसलिए असुर शक्ति हमें व्यसन और कामवासना के खूँटे से बांध देते हैं। काम चिंतन में उलझाए रखता है, और शक्ति के ऊर्ध्व गमन को बाधित कर नर पिशाच तक बना देता है। कुछ पल की ख़ुशी और कुछ क्षण का एंटरटेनमेंट में उलझाए रखता है। देह व्यापार, गैंग रेप, बच्चियों का रेप, मीडिया द्वारा रेप को नमक मिर्च लगाकर परोसना हो ये सब नर की पैशाचिक कुकर्म ही तो हैं। जो शक्ल सूरत से दिखने वाला इंसान होता है लेकिन भीतर से नर पिशाच होता है।

6- जिनके मन मे श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य होता है, और बड़े कार्य हेतु समर्पित होते है, उच्च बौद्धिक क्षमता होती है वो काम विकार से ग्रसित नहीं होते। उनके लिए ईश्वर के बाद अविष्कार करने की लगन और कुछ नया या अलग करने की चाह होती है।

7- किसी को स्पर्श न करें और न ही घूरें, किसी के साथ अकेले घूमने न जाएं। कभी पार्टी वगैरह करनी हो तो ग्रुप में करें। कोई समाज सेवा कार्य भी हो तो भी अकेले लड़का लड़की न मिलें। यदि ऑफिस की पार्टी में मजबूरन जाना पड़े तो भी किसी के बहकावे में मद्यपान न करें, उसकी जगह साथ देने हेतु एप्पल या अन्य फलों का जूस पिये।

8- आपको डिलेड ग्रैटीफिकेशन का अभ्यास करना चाहिए जिसका मतलब है ऐसे विचार रखना और ऐसे कामों पर ध्यान देना जिनसे देर से लेकिन बेहतर परिणाम मिलें | काम-वासना क्षणिक सुख- इससे बिलकुल विपरीत तरह की भावना है जिससे आप शीघ्र ऐसा व्यवहार करने के लिए प्रेरित हो जाते हैं जिससे आप अपनी कामेच्छा को संतुष्ट कर सकें | कोई भी व्यक्ति अगर डिलेड ग्रैटीफिकेशन में अभ्यस्त है तो इससे वो जीवन के हर क्षेत्र में लाभ प्राप्त करता है, जैसे भावनात्मक, आर्थिक, नौकरी और व्यवसाय इत्यादि में, और यहाँ तक कि प्रेम के क्षेत्र में भी इसका लाभ मिलता है |

9- अगर लोगों के किसी ग्रुप में होते हुए या गर्मी से भरे किसी दिन में गली में टहलते हुए खुले/छोटे कपड़े पहने हुए लोगों को देखकर आपको वासनामय विचारों से जूझना पड़ रहा हो तो आपके लिए ये आसान सा अभ्यास है: हर व्यक्ति की तरफ 2 सेकंड के लिए देखें – आपको इस बात से फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि कौन कैसा दिखता है | इसके बाद अपनी आँखों को लोगों की तरफ से हटाकर किसी और चीज पर टिका दें | सोचें भगवान कितना बड़ा इंजीनियर जो चेतन रोबोट बना सकता है। इंसान के बनाये रोबोट तो मृत-मशीन है। खूबसूरत इंसान को बनाने वाला भगवान कितना सुंदर होगा। इस अभ्यास से आपको ये समझ में आएगा कि हर व्यक्ति की आत्मा और महत्व बराबर ही है | उसे बनाने वाला और आपको बनाने वाला एक ही है।

10- श्रेष्ठ जीवन लक्ष्य बनाएं और आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाएं, नियमित गायत्री उपासना और अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करें, श्रेष्ठ लक्ष्य को पाने का जुनून पाले और इस ओर ध्यान केंद्रित करें। जिंदगी में भगवान ने अपने बाद सृष्टि संचालन की क्षमता मनुष्य को दी है। बहुत कुछ एक्सप्लोर जीवन में करना है, जीवन मे बहुत कुछ अचीव/प्राप्त करना है। आप अपना जीवन यूँ व्यर्थ नहीं कर सकते।

कुछ निम्नलिखित पुस्तकें पढ़ों:-

1- आध्यात्मिक काम विज्ञान
(युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा)

2- Practice Of BrahmCharya (swami shivanand)

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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