नारी का स्वाभिमान जगाना है

देश की आधी आबादी,
नारी है,
फिर भी अज्ञानता अभी भी,
कुछ पर भारी है,

कुछ प्रतिशत ही,
जाग्रत नारी हैं,
अधितर पर अभी भी,
पुरूष समाज ही भारी है।

सुप्तावस्था में पड़ी है कुछ नारी चेतना,
मोह में भटक रही है ये ईश्वर की श्रेष्ठ रचना,
स्वयं के अस्तित्व से हैं अंजान,
पुरूष को ही समझती हैं सर्वशक्तिमान।

कुछ तो चुपचाप सब सहती हैं,
किसी से कुछ नहीं कहती हैं
हर दर्द किस्मत समझ के सहती हैं,
क्यूंकि लड़की जन्म को अभिशाप समझती हैं।

जनजागृति और स्वाध्याय-सत्संग से,
इनकी चेतना जगाना होगा,
इन्हें स्वाभिमान के साथ,
जीवन जीना सिखाना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *