जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति

सावधान! ज़रा ठहरो,
इस जीवन में,
किस लिए व किस प्रकार चल रहे हो,
इसे तनिक गहराई से विचारो,
गहन विचार मंथन से,
निज जीवन उद्देश्य-लक्ष्य का मक्खन निकालो।

जब मात्र पैर चलते हैं,
इसे भटकना कहते हैं,
जब पैर के साथ बुद्धि चल रही है,
इसे प्रवास कहते हैं,
जब पैर-बुद्धि के साथ हृदय चल रहा हो,
उसे ही सुखद जीवन यात्रा कहते हैं।

लक्ष्यविहीन भटकने में,
मात्र पैरों से चलना काफ़ी है,
पेट-प्रजनन हेतु कमाने में,
मात्र पैर के साथ,
बुद्धि का चलना काफ़ी है।

लेकिन जीवन लक्ष्य की प्राप्ति हेतु,
हृदय में जुनून और मन में लगन जरूरी है,
पैर और बुद्धि के साथ,
हृदय का सामंजस्य जरूरी है।

पैरों में सामर्थ्य हो,
बुद्धि में समझदारी हो,
हृदय में लक्ष्य को हर हालत में पाने की,
अटूट चाहत हो,

तो ही मन में लगन उपजती है,
और जिगर में साहस की गंगा बहती है,
बड़ी बड़ी बाधाओं को पार करने हेतु,
बुद्धि चलती रहती  है।

जीवनलक्ष्य से प्रेम हो तो,
दृष्टिकोण साफ़ रहता है,
जीवन लक्ष्य पर मन,
गिद्ध दृष्टि रखता है।

आध्यात्मिक लक्ष्य और संसारिक लक्ष्य,
दोनों से मिलकर जीवन लक्ष्य बनता है,
जो इस गूढ़ बात को समझता है,
वही सर्वत्र सफ़ल और आन्नदित रहता है।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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