प्रश्न – क्या लोग धर्म और तंत्र के नाम पर पागलपन का शिकार होते है? अपना होश खो बैठते हैं? यदि ऐसा कोई हो जाये तो उन्हें पुनः होश में कैसे लायें?

उत्तर – मनुष्य का दिमाग़ बड़ी अजीबोगरीब संरचना लिए हुए है, किसी भी मनुष्य के सबसे शक्तिशाली दिमाग़ को भी बेक़ाबू और पागल किया जाना आसानी से सम्भव है।

 जिस पर मनुष्य की अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास टिक जाए, वो उसके आगे दिमाग़ की दुकान बंद कर देता है। कुछ सोचने समझने की शक्ति खो देता है।

उदाहरण :- यदि एक लड़के का पत्नी पर अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास हो तो पत्नी के भड़काने पर अपनी जन्मदेने वाली वृद्ध माता और जन्मदाता पिता के साथ मारपीट कर उन को बेदर्दी से वृद्धाश्रम छोड़ आते है या घर से निकाल देते हैं।

इसी तरह यदि इन लडकों की अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास माता-पिता पर हो तो दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करने या जीवित जलाने में संकोच नहीं करते।

जब स्त्री प्रेमी पर अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास कर लेती है तो घर से भाग जाती है, प्रेमी को पाने के लिए पागलपन की किसी भी हद को पार कर सकती है।

जब यह अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास तांत्रिक को समर्पित होता है तो उल्टी सीधी हरक़त करने में अनपढ़ तो अनपढ़ पढ़े लिखे लोग  भी नहीं हिचकते।

जब यही अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास धार्मिक नेता पर, पीर मौलवी पर हो जाती है तो तीन तलाक़, हलाला, आतंकवाद, हत्या, लूटपाट जैसी अमानवीय आतंकी घटनाओं को करने से ये लोग नहीं झिझकते।

Root Cause Analysis :- अब अगर आप गौर से जड़ समझेंगे तो पाएंगे कि अंध श्रद्धा के पीछे मुख्य कारण उस व्यक्ति की कोई न कोई चाहत होती है, अब वो चाहत सांसारिक भी हो सकती है और स्वर्ग-मुक्ति की आध्यात्मिक चाहत भी हो सकती है। व्यक्ति जिस पर अंध श्रद्धा करता है वो किसी भी हालत में उसे नाराज़ नहीं करना चाहता। उसके हाथों की कठपुतली बन जाता है।

आप जेलों में अपराधियों/आतंकियों की प्रोफ़ाइल चेक कीजिये तो आप पाएंगे कई सारे तो बहोत पढ़े लिखे लोग हैं।

आइये प्राचीन उदाहर :- दुर्योधन और रावण का देखते हैं, वो बहुत ज्यादा पढ़े लिखे लोग और धर्म के ज्ञाता थे। रावण का अपनी माता के प्रति अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास और दुर्योधन का अपने मामा शकुनि के प्रति अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास उनकी बुद्धि पर पर्दा डलवा देते है। मदान्ध करके पूरे समाज को कलंकित करने वाली दो घटनाएं सीता हरण और द्रौपदी चीर हरण जैसी घटनाओं को अंजाम दे डालते हैं।

देखिए :- ब्रेन वाश तो आज़कल टीवी सीरियल मीडिया फ़िल्मे युवाओं का कर रहे हैं, उनपर अंध श्रद्धा का असर यह है कि आजकल की युवा लड़की फैशन के नाम पर अर्द्ध नग्न घूम रही है, युवा नशे का ज़हर नशों में भर रहे हैं।

आजकल आस्था चैनल और अन्य धार्मिक चैनल को कुछ ज्यादा ही सुनने वाले धार्मिक पागलपन का शिकार हो रहे हैं। इनमें परोसे जाने वाले कंटेंट को फ़िल्टर नहीं किया जाता। यह एक बहुत बड़ा खतरा है।

तो बचाव क्या है? :- घर में धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक माहौल विनिर्मित करना। आध्यात्मिक और धार्मिक दोनों में अंतर करना बहुत आसान है, अध्यात्म दवा के फार्मूले की बात करता है यदि इन साल्ट का कम्पोज़िशन किसी भी ब्रांड की दवा में है तो अमुक बुखार रोग ठीक हो जाएगा। धर्म कम्पनी ब्रांड की तरह विज्ञापन करता है अमुक बुखार है तो हमारे ब्रांड की दवा से ही ठीक होगा।

बच्चा कोरे दिमाग़ को लेकर गर्भ मे आता है उसके दिमाग़ की सही प्रोग्रामिंग और ब्रेनवाशिंग वैज्ञानिक आध्यात्मिक संस्कारो और विचारों से हुई तो वह कभी पागलपन का शिकार न होगा। बच्चे के जीवन मे यह ब्रेन प्रोग्रामिंग माता-पिता, दादा-दादी या क्लोज रिश्तेदार, अध्यापक गण और वातावरण करता है।

*यदि कोई बड़ा हो गया है और धार्मिंक अंधविश्वास और पागलपन का शिकार है तो उसके लिए क्या करें?* – आपके हाथ में सिर्फ़ प्रयास है, उसे अच्छे विचार दें, साधक बनने हेतू प्रेरित करें। नित्य ध्यान और अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करवाएं। यदि वो आपकी बात मान लेता है तो बदलाव होगा और नहीं मानता, ध्यान-स्वाध्याय नहीं करेगा तो इस पागलपन से उबरना बड़ा मुश्किल है।

कुछ पुस्तकें ऐसे धार्मिक पागलपन से लोगों को उबार सकती है यदि कोई ढंग से पढ़ कर समझ ले:-

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?
3- योग के नाम पर मायाचार
4- क्या धर्म एक अफ़ीम की गोली है?
5- मैं क्या हूँ?
6- महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया
7- सतयुग की वापसी

ये सभी पुस्तक निम्नलिखित लिंक से फ्री डाउनलोड करके पढ़े:-

http://literature.awgp.org
http://www.vicharkrantibooks.org

भगवान कृष्ण ने लाखों को उबारा और ज्ञान दिया। लेकिन दुर्योधन ने उनको सुनने से ही इंकार कर दिया तो उसका उद्धार सम्भव न हो पाया।

भगवान का नाम लेकर प्रयास कीजिये। कर्म करिये फल की चिंता मत कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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