प्रश्न – दी… इच्छा शक्ति और विचार शक्ति में क्या अंतर है? क्या ये दोनों एक है?या अलग अलग हैं?है क्या ये दोनों?

उत्तर – आत्मीय बहन, विचार और इच्छा एक दूसरे के पूरक हैं।

विचार का जन्म किसी न किसी ऑब्जेक्ट या  इन्फॉर्मेशन या सूचना से जन्म लेता है।

एक किसान और एक साइंटिस्ट के अंदर उठने वाले विचार प्रवाह और उन विचारों की शक्तियाँ भी अलग अलग होती हैं।

इसी तरह इच्छाओं का जन्म भी आसपास से मिली इन्फॉर्मेशन, परिस्थिति और विचारों पर निर्भर करता हैं। इच्छाएं भी किसान और साइंटिस्ट की अलग होंगी। किसान जहाँ अच्छी फसल की उपज, अपने परिवार का सुख-सौभाग्य और फसल की अच्छी क़ीमत सम्बन्धी इच्छाएं करेगा। वहीं दूसरी तरफ साइंटिस्ट कुछ नए अविष्कार, नई खोज कर के दुनियाँ को चमत्कृत करने की इच्छा करेगा।

जीव चैतन्य है और उसका पोषण अनंत चेतना करती है, इसलिए उसके अंदर वह सुप्त शक्ति है वह अपनी सम्भावना को सर्व शक्तिमान के सत्तर तक उठा सके ।

जो जैसा बनना चाहता है वैसा बन जाता है । इसका रहस्य मन में उठने वाली इच्छा से आरम्भ होता है जो कि उसके आसपास की वस्तुएं, जानकारी और परिस्थिति से सम्बंधित विचारों से जन्मेगा । मन का धर्म इच्छाएं उत्पन्न करना है । मन में कोई इच्छा उठी , शीघ्र ही मन की सेविका कल्पना शक्ति उस इच्छा का एक मानसिक चित्र रच देती है , एक कल्पना चित्र मानस पटल पर बन जाता है । यदि मन की इच्छा निर्बल हुई तो वह कल्पना चित्र कुछ क्षणों बाद ही अवचेतन मन की परतों में विलीन हो जाएगा, लेकिन यदि वह इच्छा बलवती हुई तो मन की विद्युत धारा चारो और उड़ उड़ कर अनुकूल वातावरण की तैयारी में लग जायेगी। बलवती इच्छा शक्ति अब बुद्धि को सक्रिय करेगी और तत्सम्बन्धी शशक्त विचार शक्ति को उतपन्न करेगी, विचारों की सृजनात्मक शक्ति उस इच्छा को पूर्ण करने में जुट जाएगी  । अब बुद्धि में उस कल्पना चित्र के प्रप्ति के लिए तरकीबें उठेंगीं , संकटों का मुकाबला करने लायक योग्य शक्ति पैदा होगी और ऐसी ऐसी गुप्त सुविधाएं उपस्थित होगी जिनसे अब तक हम अनजान थे ।

जैसे एक इंसान ने सड़क पर एक  कार को देखा । अगर उसका देखना ऐसे ही था जैसे एक कैमरे के लेन्स से देखना तो उस कार के बारे में उसकी इच्छा शक्ति बलवती नहीं हो पाएगी, और कुछ ही समय के अंतराल पर उसे उस कार की विस्मृति हो जायेगी । लेकिन यदि उस मॉडल की कार को देख कर उसके मन में यह इच्छा उठी की उसके पास भी ऐसी कार हो , उसके मन में उस कार का एक कल्पना बिम्ब बन जाएगा , यदि उसकी इच्छा और तीव्र हुई की उसके पास वह कार होनी ही चाहिए , तो इच्छा शक्ति की खाद खुराक से वह चित्र कुछ ही समय में परिपुष्ट हो जाएगा और वास्तविक कार से अपना घनिष्टता स्थापित कर लेगा ,बुद्धि में तरकीबें उठेंगीं, विचारो का प्रवाह उमड़ेगा की कैसे उस कार को प्राप्त किया जाए, यदि उस आकर्षण चित्र को निरंतर उसी धारा में सोचने से पोषण मिलता रहा और प्रयास वह मनुष्य करता रहा तो , बाहर की परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल हो , धीरे धीरे वह आकर्षण चित्र अपना काम करता रहेगा और परिस्थितियों को अनुकूल करने की दिशा में कार्य आरम्भ कर देगा । इच्छा उठने से लेकर वह कार मिलाने तक की मार्ग की असंख्य छोटी मोटी बाधाएं को साफ़ करने में विचारों की सृजनात्मक शक्ति ही  काम करती है, मनुष्य कितने संघर्ष करता है यह हम नहीं जान पाते । यही इच्छा शक्ति असंख्य प्रकार की शारीरिक, मानसिक और बाहरी परिस्थितियों की कितने बलपूर्वक चीर चीर कर अपना रास्ता साफ़ करती है ,इसे हम देखा पाते तो समझ पाते की हमारे अंदर अत्यंत प्रभावशाली चुम्बक शक्ति भरी पड़ी है ।

यह नियम है की तत्व जितने जितने सूक्ष्म होते जायंगे उसमें निहित शक्ति उतनी ही बढ़ती जायेगी । विचार से सूक्ष्म इच्छा है और इच्छा से अधिक सूक्ष्म और शक्ति शाली संकल्प है । विचार शक्ति को इच्छा शक्ति और कालांतर में संकल्प शक्ति में परिवर्तित करके जीव जो जो बनना चाहता है बन सकता है जो जो प्राप्त चाहता है प्राप्त कर सकता है ।

विचार से इच्छा और इच्छा से संकल्प और सङ्कल्प को पूर्ण करने में जुट पढ़ने का हुनर ही सफ़लता की आधार शिला है।

ज्यादा जानकारी के लिए तीन पुस्तकें
📖 *विचारों की सृजनात्मक शक्ति*
📖 *प्रखर प्रतिभा की जननी इच्छा शक्ति*
और
 📖 *सङ्कल्प शक्ति की प्रचंड प्रक्रिया* पढ़िये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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