प्रश्न – ब्रह्म क्या है? ब्रह्म ज्ञान क्या है?

उत्तर – आत्मीय भाई, जब प्रायमरी स्कूल का बच्चा अपनी टीचर से पूँछता है कि सूर्य क्या है? तो पिता उसे संक्षिप्त जवाब देता है जो वो समझ सके। लेक़िन जब वही बालक ग्रेजुएशन में एक प्रोफेसर से पूँछता है कि सूर्य क्या है तो उत्तर बहुत विस्तृत और रिसर्च पर आधारित होता है।

प्रश्न एक ही था – *सूर्य क्या है?* लेक़िन उत्तर अलग हुए प्रश्नकर्ता की योग्यता और पात्रता के हिसाब से?

अब स्वयं से प्रश्न पूँछो कि क्या तुमने अध्यात्म की ग्रेजुएशन क्लास में प्रवेश कर लिया है? स्वयं के जीवन के प्रति चैतन्य और आत्म ज्ञान प्राप्त कर चुके हो? क्योंकि आत्मज्ञानी ही ब्रह्म ज्ञान को समझने की योग्यता पात्रता रखता है।

*श्रीमद्भागवत गीता* के अध्याय 8 और श्लोक 1 में *अर्जुन* भी *भगवान कृष्ण* से पूँछता है *ब्रह्म क्या है*?

क्योंकि अर्जुन को आत्मज्ञान नहीं है इसलिए भगवान ने *ब्रह्म क्या है* का संक्षिप्त जवाब दिया कि *जो अविनाशी है वही ब्रह्म है, जो सृष्टि से पहले, सृष्टि के समय और सृष्टि के प्रलय के बाद भी मौजूद रहता है। वह ब्रह्म है।*

*जिस प्रकार मछली जल में रहती है और जल मछली के पेट में भी होता है। उसी तरह हम ब्रह्म के अंदर हैं और ब्रह्म हमारे अंदर है।*

*वेद पुराण उपनिषद सब ब्रह्म की ओर ईशारा मात्र हैं, वो ब्रह्म की पूर्ण व्याख्या करने में असमर्थ हैं। जो कहता है वो ब्रह्म ज्ञानी है वो वास्तव में ब्रह्म को नहीं जानता।*

वैज्ञानिक दावा करते हैं कि वो जल को  जान गए हैं, लेकिन एक बूंद भी जल आजतक नहीं बना पाए।

*उस परब्रह्म ने तुम्हारे शरीर में ऐसी मशीन फिट कर रखी है कि तुम फल और सब्जियां खाओ, रक्त बन जाएगा। वैज्ञानिक दावा करते हैं कि वो रक्त को जान गए हैं लेकिन एक बूंद भी रक्त आज तक मशीनों द्वारा नहीं बना पाए। एक तरफ सब्जी फल डालें मशीन में और दूसरी तरफ रक्त बनकर निकले।*

हमारी मानवीय बुद्धि अतिक्रमण करती है, उदाहरण छोटे दो बच्चे हों एक रोबोट और दूसरा कार खेल रहा हो तो दोनों अपने मे खुश नहीं होंगे एक तीसरा बड़ा बच्चा कोई रिसर्च कर रहा हो उनकी उस पर नज़र होगी। रिसर्च उन बच्चों के लिए खिलौना है, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?

सीढ़ी पर क्रमशः ही चढ़ा जा सकता है, ग्रेड्यूएशन तक प्रायमरी से क्रमशः पढ़कर ही जाया जा सकता है।

पूरे समुद्र को प्रयोगशाला में नहीं लाया जा सकता, उसकी कुछ जल ही प्रयोगशाला में लाया जा सकता है। यदि समुद्र जल की प्रॉपर्टी को समझ गए तो कुछ हद तक समुद्र भी समझ जाओगे।

*परब्रह्म समुद्र है, और उसकी एक बूंद तुम्हारी आत्मा है। तुम्हारा शरीर स्वयंमेव एक प्रयोगशाला है। विभिन्न रिसर्च स्वयं पर कर के आत्मतत्व को जानों। जिस दिन आत्म ज्ञान हुआ उस दिन ब्रह्मज्ञान के अधिकारी हो जाओगे, ब्रह्म और ब्रह्माण्ड को समझने की पात्रता विकसित हो जाएगी।*

👉🏼 *एक छोटा प्रयोग आत्मशक्ति का घर पर करके देखो*:- अपनी दृष्टि बाएं हाथ की हथेली के बीचों बीच केंद्रित करो और उसे एकटक देखते हुए गायत्री मंत्र मन ही मन जपो। कुछ देर में पाओगे कि हथेली के बीच गर्म होने लगा। जैसे उस पर धूप पड़ रही हो। अब पूजन रूम में धूप तो है नहीं फिंर यह गर्मी कहाँ से आई? सोचो और करके देखो😊

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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