भोजन सिर्फ़ पेट नहीं भरता, रिश्ते भी बनाता है।

जो माताएं गर्व से कहती हैं, हमारा बेटा या बेटी खुद जो कि 10 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं, खुद से एक ग्लास पानी नहीं पी सकते, ख़ुद खाना परोस कर खा नहीं सकते।

15 वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चे जरूरत पड़ने कुछ खाना बनाकर खा नहीं सकते। घर मे मम्मी-पापा को अपने हाथों से बनाकर कुछ खिला नहीं सकते।

यह लाड़ प्यार बेटे और बेटी को संवेदनहीन बना देगा। वो बड़े होकर कभी घर में काम करने वाली माँ और पत्नी का दर्द नहीं समझेंगे, घर मे काम करने वाली मेड का दर्द नहीं समझेंगे।

बेटी इतनी नकचढ़ी हो जाएगी कि  जॉब व्यवसाय में भले सफलता हासिल कर ले, लेकिन रिश्तों की अहमियत कभी नहीं समझेगी। बेटा रिश्तों की अहमियत ही नहीं समझेगा।

भोजन सिर्फ़ पेट नहीं भरता, रिश्ते भी बनाता है। स्वाभिमान भी जगाता है। सहयोग सिखाता है। संवेदनशील रिश्तों के प्रति बनाता है।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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