प्रश्न – दी, मुझे संस्कृत का अर्थ नहीं आता। बिना अर्थ जाने मैं यज्ञ के मन्त्रों का भावपूर्वक उच्चारण करके यज्ञ करती हूँ। कृपया यह बतायें कि क्या यह सही है?
उत्तर – आत्मीय बहन,
एक सत्य घटना सुनो, सूरदास जो कि अँधे थे भगवान के दर्शन को नित्य मन्दिर आते। तो एक दिन युवा पुजारियों ने उनका मज़ाक़ उड़ाते हुए पूँछा, अँधे हो दुनियाँ नही दिखती, मन्दिर और भगवान की मूर्ति नहीं दिखती। फ़िर दर्शन करने रोज क्यों आते हो?
सूरदास मुस्कुरा के बोले, भाई मैं अंधा हूँ, लेक़िन मेरा भगवान तो नेत्रों वाला है। वो तो रोज़ देखता है न कि मैं उसके दर्शन को आया हूँ। मेरे नेत्र होने से दर्शन पर वो फ़र्क़ नहीं पड़ता, जो भगवान के नेत्र होने और भक्त पर कृपा दृष्टि पड़ने से फ़र्क़ पड़ता है।
इसी तरह बहन, तुम्हें संस्कृत नहीं समझ आती कोई बात नहीं, लेकिन भगवान को तो संस्कृत आती है, उन्हें उन मन्त्रों के अर्थ भी समझ आते हैं। उन मन्त्रों के माध्यम से तुम क्या प्रार्थना कर रही हो वो ये समझ रहे हैं । वो दयानिधान तो सुन रहा है कि तुम क्या बोल रही हो। वो तुम्हारे हृदय के भावों को भी पढ़ सकता है। अतः भक्त सूरदास की तरह तुम भी यज्ञ करो और संस्कृत के मंन्त्र भाव पूर्वक पढ़ो और यज्ञ करो।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन