प्रश्न – युगऋषि परम्पूज्य गुरूदेव का साहित्य नियमित पढ़ते हैं। बहुत सारी जीवनोपयोगी बातों को जीवन में उतारना चाहते हैं, पर संभव नहीं हो पाता। कृपया बताएं गुरूदेव के साहित्य को जीवन में कैसे उतारें।

उत्तर – आत्मीय बहन,

सर्कस के शेर इत्यादि जानवरों को आपने देखा होगा, कि कैसे वो सर्कस मास्टर के इशारे पर नाचते गाते है। इसके पीछे सर्कस मास्टर ने कितनी ज्यादा मेहनत की होगी यह आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं। कभी दण्ड तो कभी पुरस्कार, कभी प्यार तो कभी फटकार लगाई होगी, घण्टों उन्हें अभ्यस्त कराया होगा। तब जाकर वो सर्कस में करतब दिखा सके।

हमारा मन किसी जंगली जानवर से कम नही है, उसे काबू करने और साधने के लिए सर्कस मास्टर से कम मेहनत नहीं लगेगी, बल्कि ज्यादा ही मेहनत करनी पड़ेगी। मन से बड़ा वक़ील और दलील करने वाला कोई होगा नहीं, जो स्वयं की गन्दी आदतों को भी दलील देकर सही ठहरा देता है। अच्छे पढ़े लिखे लोग भी मन के गुलाम बने रहते हैं।

याद रखिये, मन बहुत अच्छा नौकर है और मन बहुत बुरा मालिक है। अतः इसे नौकर की औकात में रखना जरूरी है।

भगवान श्रीकृष्ण से गीता में अर्जुन ने भी यही प्रश्न किया था कि मन को साधें कैसे? धार्मिक अनुसाशन में बांधे कैसे? जो ज्ञान की बातों को पढ़ा या सुना उसे आचरण में उतारें कैसे?

तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि, कोई ज्ञान को जीवन मे उतारने का माध्यम मन है। पढ़ना मन को होता है, और आचरण में लाने का काम भी मन का ही है। जबतक यह नहीं सधेगा तबतक बात नहीं बनेगी। यदि एक चार पहिया गाड़ी चलाना सीख लो तो दूसरे मॉडल की चार पहिया गाड़ी चलाना सीखना आसान हो जाता है। इसी तरह मन को किसी एक धारणा में  घण्टों पर स्थिर ध्यानस्थ करना आ गया तो कुछ दूसरा मन से करवाना कोई मुश्किल कार्य न होगा।

मन को साधने का उपाय है – *अभ्यास और वैराग्य* ।  अभ्यास घण्टे – आधे घण्टे एक जगह पर बिना हिले डुले स्थिर बैठने का। किसी एक विचार या धारणा पर अपना ध्यान केंद्रित करने का। जो मन का ध्यान भटकाये उन चीज़ों से उतने घण्टे दूरी बना के रखने का। मन को कभी प्यार से तो कभी फटकार के ध्यान पर बिठाना, कभी दण्ड तो कभी पुरस्कार का तरीका अपनाना।

गायत्री जप और उगते सूर्य का ध्यान वस्तुतः मन को नियंत्रित करने और साधने का ही तो उपक्रम है। एक ही मंन्त्र एक ही विचार से मन को बांधना और स्थिर एक आसन में बैठ कर जप करना यह उपासना वस्तुतः मन को साधना ही तो है।

जब मन एक बार सध गया, जैसे कलाकार का हाथ जब ब्रश में सध जाता है तो वो कोई भी पेंटिंग बना सकता है। जिसका एक बार किसी इंस्ट्रूमेंट में हाथ सध गया तो वो कोई भी धुन बजा सकता है। जिस सर्जन का एक बार ऑपरेशन में हाथ सध गया तो बच्चे बूढ़े जवान वो किसी का भी ऑपेरशन कर सकता है। इसी तरह जब मन आपकी मर्जी से आपके नियंत्रण में चलने लगेगा, आप जब चाहे जिस विषय को अपने आचरण में उतार सकेंगी। जिस भी सब्जेक्ट में चाहें मास्टर बन सकेंगी। बस मन को नियंत्रण करना आपको सीखना होगा।

फ़िर जब कोई साहित्य आप पढेंगी तो वस्तुतः वो साहित्य मन मथेगा और उसका मक्खन आपको देगा। वो मक्खन फ़िर आपके व्यक्तित्व में पचेगा। और फिंर आपके आचरण में वो ज्ञान दिखेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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