कविता – जो गया वो भी जलेगा* *जो बचा वो भी जलेगा* *जो गया वो चिता में जलेगा* *जो बचा वो चिन्ता में जलेगा।

*जो गया वो भी जलेगा*
*जो बचा वो भी जलेगा*
*जो गया वो चिता में जलेगा*
*जो बचा वो चिन्ता में जलेगा*

वो बेतहाशा रो रही थी,
उसका पति,
जो उसका सब कुछ था,
उसे छोड़ गया था।

तीन दिनों तक वो रोती रही,
निज शरीर का उसे होश न था,
किसी को ख़बर करने का भी,
उसे होश नहीं था।

शरीर तीन दिनों में सड़ने लगा,
दुर्गंध से वो घर भरने लगा,
तीव्र दुर्गंध ने उसको विचलित किया,
उसका ध्यान संसार की ओर उन्मुख किया।

अरे तीन दिन बीत गया,
पति का शरीर सड़ने लग गया,
अब तो सबको ख़बर करनी होगी,
पति के शरीर को मुखाग्नि देनी होगी।

स्वयं के शरीर पर ज्यों उसका ध्यान गया,
तीन दिन के भूखे शरीर ने भी,
तुरन्त भोजन का डिमांड किया,
कल जब सब आएंगे,
सबसे मिलने जुलने में समय लगेगा,
कल भोजन नहीं मिलेगा,
कल पुनः भूखा रहना पड़ेगा।
अब भूख बड़ी असहनीय थी,
रोते रोते उसकी हालत दयनीय सी थी।

अब दिमाग़ भी सक्रिय हुआ,
भोजन की तलाश में मन जुटा,
अगर कुछ पकाया तो बर्तनों की आवाज़ होगी,
भोजन की वाष्प दूसरों के घर तक जाएगी,
भूने चने कुछ पड़े थे,
रोते रोते,
और पति को देखते देखते,
वो खाये जा रही थी,
पिछले तीन दिनों में जो मरने को सोच रही थी,
वो ही चने ख़ाकर निज जीवन को बचा रही थी।

👉🏼 संसार में दुःखदाई है जो मौत🙏🏻
खुद के चाहने पर नहीं आती है,
किसी के बुलाने पर नहीं आती है,
उसको जब आना हो तब ही आती है,
किसी के भगाने पर भी नहीं जाती है।

फ़िर भी मनुष्य,
मोह-माया में उलझा हुआ है,
वैराग्य उसका जगता ही नहीं है,
कभी परमात्मा की ओर,
समर्पित हो देखता ही नहीं है।

जो स्वयं का शरीर भी,
साथ ले जा नहीं सकता है,
उस शरीर के ऐशोआराम की,
वस्तुएं जोड़ने में ताउम्र जुटता है।

देख कर भी अनदेखा कर रहा है,
सुन कर भी अनसुना कर रहा है,
आत्मा की अमरता समझ न रहा है,
जो साथ ले जा न सकेगा,
केवल उसे ही पाने को ही भटक रहा है।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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