कविता – तू संघर्ष से क्यूँ डरता है? तू मनोबल क्यूँ हारता है?

23 मार्च शहीद दिवस

कविता – तू संघर्ष से क्यूँ डरता है? तू मनोबल क्यूँ हारता है?

पाषाण युग का समय था,
अंधकारमय जंगलों में जीवन था,
तब भी मनुष्य न हारा,
और संघर्ष को स्वीकारा,
फ़िर वर्तमान आधुनिक युग में जीने वाला,
तू मनोबल क्यूँ हारता?
फिंर तू संघर्ष से क्यूँ  डरता है?

किस युग में संघर्ष नहीं था?
किस युग में संघर्ष नहीं होगा?
किसके जीवन में कठिनाई नहीं है?
किसके जीवन में संघर्ष नहीं होगा?
जब बिना संघर्ष और दर्द के,
जन्म नहीं होता है,
फ़िर बिना संघर्ष और दर्द के,
तू जीने की क्यों सोचता है?

अपनी ज़िंदगी का रोना रोता है,
कभी सैनिकों के बारे में सोचा है?
उनकी ड्यूटी,
कहीं जमने वाली ठण्ड में होती है,
और कहीं जला देने वाली गर्मी में होती है,
अपनों और अपने परिवार से दूर,
दुश्मनों की गोलीयो और साजिशों के बीच,
वो ड्यूटी करता है,
फ़िर भी मौत से नहीं डरता है,
बड़ी बहादुरी से सरहद पर ड्यूटी करता है,
जब वो सरहद पर संघर्ष कर सकता है,
फ़िर तू संघर्ष से क्यों डरता है?

भगवान भोजन सबको देता है,
लेक़िन चिड़िया को घोंसले में,
और शेर को उसकी मांद में,
होम डिलीवरी नहीं देता है।
फ़िर तू संघर्ष से क्यूँ डरता है?
फ़िर तू मनोबल क्यूँ हारता है?

उठो! जागो! आगे बढ़ो,
निज जीवन में संघर्षों को स्वीकारो,
तप की अग्नि में,
जीवन को कुंदन सा निखारो,
वीर बनकर जियो,
संघर्षों से खेलो,
महाराणा प्रताप और वीर शिवाजी की,
अमर वीरता को न भूलो,
👉🏼 भगत, विस्मिल, सुखदेव के जीवन चरित्र को,
निज व्यक्तित्व में घोलो,
उच्च मनोबल से सर उठाकर जियो,
हिंद की ज़मीन पर सिंह सा दहाड़ो,
भारत की वीर भूमि में वीर ही पैदा होते हैं,
इस बात को बस अपने जीवन चरित्र से कह डालो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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