प्रश्न – नर को पाँच श्रेणियों में रखा जाता है, इनकी व्याख्या कृपया भेजे।

उत्तर – प्रणाम दी, मानव की चेतना की उन्नति की अवस्था, स्वभाव और आचरण के  आधार पर उसे नर-पक्षु, नर-पिशाच, मानव, महामानव और देवमानव इन पाँच श्रेणियों में रखा जाता है।

आकृति से यह मनुष्य होते है, लेकिन अंतः प्रकृति इनकी चेतना की अवस्था के आधार पर अलग अलग होती है।

किसी भी बालक को गर्भ से इनमें से मनचाही श्रेणी में माँ प्रवेश करवा सकती है। जन्म के बाद और लालन पालन से मनचाहा स्तर पाया जा सकता है। माँ के लिए भोजन से बच्चे की आकृति बनती है और माँ के पढ़े, सुने, लिखे और चिंतन किये गए विचारों से बच्चे की प्रकृति बनती है। जैसी सन्तान चाहिए वैसा ही मां को 9 माह चिंतन करना है।

1- नर-पशु – ऐसा व्यक्ति पशुओं की तरह जीवन जीता है, पेट-प्रजनन तक सीमित इनकी जिंदगी होती है। खाने के लिए जीते हैं, इसके लिए ही कमाते है।

2- नर-पिशाच – ऐसा व्यक्ति स्वार्थ की पराकाष्ठा में दुसरों को कष्ट पहुंचाता है। कोई धन प्राप्ति के लिए अन्याय करता है, कोई हवस मिटाने को अन्याय करता है और मिथ्या भ्रम में जन्नत पाने के लिए आतंकवादी जिहाद करते हैं। जम्मूकश्मीर में पुलवामा का अटैक नरपिशाच(नरराक्षस) ने ही किया है। आतंकी आकृति से मनुष्य और प्रकृति से पिशाच होते हैं। निर्भया रेप कांड भी नर पिशाच का कृत्य है।

3- मानव – जिसे अहसास है कि वो मनुष्य है। स्वयं को बेहतर बनाने में जुटा है। अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है और व्यवस्थित जी रहा है।

4- महामानव – जिनका जीवन लोकसेवा में लग रहा है, जो स्वयं के कल्याण के साथ साथ लोककल्याण में निरत हैं। ऐसे महामानव है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकसेवक, सन्त, सुधारक, शहीद सब इस केटेगरी में आते हैं।

5- देवमानव – जिन्होंने अपना सर्वस्व लोकहित खपा दिया, स्वयं के जीवन को ईश्वरीय अनुसासन में जिया। जिनका रोम रोम परोपकार कर रहा, जो लोगों की चेतना को प्रकाशित कर दिए वो देवमानव है। उदाहरण – ठाकुर रामकृष्ण, विवेकानंद, महर्षि अरविंद, महर्षि रमण, परमपूज्य गुरुदेव, वन्दनीया माताजी इत्यादि।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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