प्रश्न – जिह्वा पर नियंत्रण कैसे करें?

उत्तर – आत्मीय भाई, युगऋषि कहते हैं कि जिह्वा रूपी टीवी का रिमोट कण्ट्रोल मन के हाथ में है। अतः मन को साधो, तो जिह्वा स्वतः सध जाएगी।

मन खराब हो तो भोजन में स्वाद नहीं मिलता, और मन अच्छा हो तो साधारण भोजन भी स्वादिष्ट लगता है।

मन में जब कुछ बातें घर कर जाती हैं कि इससे मुझे आनन्द मिलेगा, तो मन उसे खाने के लिए मचलने लगता है। अब वह नित्य गाज़र का हलवा खाने की इच्छा हो या खीर, या नित्य सिगरेट पीने की इच्छा हो या शराब। यह लत मुख्यतः मन की ही देन है।

*मन को नियंत्रित करने के लिए अभ्यास और वैराग्य का तरीका श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था।*

🙏🏻 अभ्यास :- मन को मजबूत करने वाले विचारों को जैसे बच्चे पहाड़े याद करते है वैसे ही मन ही मन दोहराओ

👉🏼 मैं आत्मा रूपी यात्री हूँ यह शरीर सराय है।
👉🏼 आत्मज्ञान प्राप्त करना मेरा जीवन उद्देश्य है।
👉🏼 आत्मउद्धार करना मेरी वरीयता है।
👉🏼 शरीर को स्वास्थ्यकर भोजन दूंगा।
👉🏼 मन मेरा नौकर है, मैं इसका स्वामी हूँ।
👉🏼 मेरा मन मेरे नियंत्रण में है।
👉🏼 हे परमात्मा मुझे सद्बुद्धि दो और सन्मार्ग पर चलाओ
👉🏼 गायत्री मंत्र जप

🙏🏻 वैराग्य :- मन को साक्षी भाव से देखना और मन मे उठने वाले विचारों पर पैनी नज़र रखना।
👉🏼 नित्य आधे घण्टे ध्यान करने बस बैठ जाना और कुछ मत करना, कुछ मत सोचना, केवल आती जाती श्वांस को महसूस करना।
👉🏼 सप्ताह में कुछ न ख़ाकर केवल फलों के रस पर एक दिन व्रत/उपवास रहना
👉🏼 दिन में दो घण्टे मौन रहना या संभव हो तो सप्ताह में एक दिन मौन रहना
👉🏼 जब भी कुछ खाने की इच्छा हो उसे तुरन्त पूरी न करें, कुछ घण्टों के लिए टाल दें। फिर विचार करें, यदि स्वास्थ्यकर हो तो खाएं।
👉🏼भोजन करते समय स्वाद का मामला जीभ से जुड़ा है और हम यह मान लेते हैं कि खान-पान की वस्तुओं में ही जीभ का स्वाद है। इसीलिए जीभ की दूसरी उपयोगिता पर ध्यान ही नहीं देते।
👉🏼 जीभ के दो स्वाद और हैं, जिनका अन्न से कोई लेना-देना नहीं है। उसका संबंध शब्दों से है, वाणी से है। जीभ को किसी बात में निंदा, शिकायत और बढ़ाचढ़ाकर बोलने में बड़ा स्वाद आता है। किसी की झूठी तारीफ करना हो तो भी जीभ तुरंत सहमति दे देती है। किसी के प्रति आभार जताने में, उसकी सच्ची तारीफ करने में कुछ लोगों की जीभ को भारी तकलीफ होती है। इसलिए हमें अपनी जिह्वा को भी अभ्यास में डालना होगा। मन तो ऊटपटांग विचार करने में माहिर होता ही है। वह ऐसे निगेटिव विचार फेंकता ही रहता है। जीभ को इसमें स्वाद आता है तो वह तुरंत लपककर बाहर कर देती है। हमें जीभ पर लगाम कसनी होगी।
👉🏼 इसके लिए दो काम करने पड़ेंगे- खूब सुनें और मौन रखें। जितना मौन रखेंगे, उतना जिह्वा को काबू में रखने की आदत होगी। किसी की बात सुनें तो पूरी तन्मयता से सुनें। सुनते कान हैं, पर जीभ भी कुछ सुन रही होती है। वरना जीभ को बोलने में ही रुचि है। इसीलिए लोग दूसरों की सुनते नहीं हैं। जब भी किसी को सुनें, भीतर से पूरी तरह वहीं रहें। मन के विचार जीभ पर आकर रुक जाएंगे। धीरे-धीरे मन को लगेगा मेरा भेजा सामान ब्लॉक हो रहा है, मुझे भी रुकना पड़ेगा। यहीं से आपके व्यक्तित्व में एक शांति उतरेगी। आपके पास बैठने वाले व्यक्ति को लगेगा कि वह आपसे कुछ लेकर जा रहा है। संभवत: वह उसके लिए शांति ही होगी।

🙏🏻 अपने मन को नियन्त्रित करके ही जीभ को नियंत्रित किया जा सकता है। मन को शशक्त विचारों से नियंत्रित किया जा सकता है। यह शशक्त विचारों की सेना सतत स्वाध्याय, ध्यान, साधना और उपासना से बनेगी। 📖 *अखण्डज्योति पत्रिका* और 📖 *युगनिर्माण योजना पत्रिका* जरूर पढ़ें, इससे विचार पैने होंगे, शशक्त विचारों की मन मे सेना तैयार होगी, जो मन पर नियंत्रण की शक्ति देगा। मन पर नियंत्रण हुआ तो जिह्वा स्वतः नियंत्रित हो जाएगी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *