प्रश्न – प्रणाम दीदी। आज एक बच्चे ने एक प्रश्न पूछा- उसने दीक्षा का प्रोसेस देखा था यज्ञ के दौरान । उसका सवाल था कि क्यों हम अंगूठे पर गुरुदेव और माता जी का ध्यान दीक्षा के दौरान करते हैं?

उत्तर – आत्मीय दी, इस प्रश्न के उत्तर में बच्चे से कहिए:-

आत्मीय बेटे, ज्योतिषाचार्यों के अनुसार *हाथ का अंगूठा भविष्य के प्राण के समान है*। अगर किसी व्यक्ति को हाथ के अंगूठे को पढ़ना आता है तो वह संबंधित व्यक्ति के व्यक्तित्व की तह तक खोल सकता है।

चार अंगुलियों के सामने अंगूठा अकेला होता है, लेकिन एक अंगूठे के बिना उन चार अंगुलियों का भी कोई मोल नहीं है*। अलग-अलग भावों में अंगूठे की अपनी अलग और विशेष भूमिका है।

अंगूठे की सहायता के बिना मुट्ठी बंद नहीं की जा सकती और यह बात तो सभी जानते हैं कि बंद मुट्ठी में ही इंसान की तकदीर होती है।*

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अंगूठा स्वत: ही आपके निर्णय को सही या गलत साबित कर सकता है। *महान हस्तरेखा विज्ञानी कीरो का कहना था कि अंगूठा ही स्वयं ईश्वर का प्रतिनिधि है। न्यूटन ने तो यहां तक कहा था कि ईश्वर से साक्षात्कार के लिए अंगूठा ही काफी है।*

सदगुरु हमारे लिए ईश्वर के समान होते हैं, कहा भी गया है:-

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

 अतः हम अंगूठे में गुरूदेव और माता जी का प्रतीक पूजन करते हैं, दोनों अंगूठों को पास रखकर शिष्य का सद्गुरु के साथ एकत्व का भाव भी रखते हैं। अंगूठा मनुष्य के व्यक्तित्व को बताता है, तो यहां भाव यह होता है कि अब हमारे व्यक्तित्व में सद्गुरु की झलक दिखे। जिस प्रकार  हाथ में अंगूठे का महत्त्वपूर्ण स्थान है, ठीक उसी प्रकार  सद्गुरु का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अंगूठे से हाथ को पकड़ और मजबूती मिलती है, उसी तरह सद्गुरु से शिष्य के जीवन मे मज़बूती आती है। लिखने में भी अंगूठे का महत्त्वपूर्ण योगदान है, उसी तरह  सद्गुरु शिष्य की किस्मत लिखते हैं।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *