गर्भसंवाद* – *गर्भ के शिल्प का विज्ञान विचारशक्ति विज्ञान और भावशक्ति विज्ञान पर आधारित है।

शिल्पकार छोटी सी छैनी और हथौड़ी जैसे साधारण से दिखने वाले उपकरण की सहायता से अनवरत मेहनत से पहाड़ के छोटे से लेकर बड़े पत्थर को मनचाहा शिल्प उभार सकता है, मूर्ति बना सकता है।

इसी तरह माता रूपी शिल्पकार गर्भस्थ शिशु के मन को मनचाहा आकार – सँस्कार दे सकती है, इसके लिए वो दो उपकरण उपयोग करती है पहला – शब्द शक्ति और दूसरा भाव शक्ति।

सन्तुलित शरीर के निर्माण में जिस तरह सन्तुलित अन्न और जल सहायता करता है, उसी तरह सन्तुलित मन के निर्माण में सन्तुलित विचार और भावनाएं सहायता करती हैं।

गर्भस्थ शिशु जिस तरह आहार के लिए मां पर निर्भर है, उसी तरह विचार के लिए भी मां पर निर्भर है।

मां को दिया भोजन, दवाएं और इंजेक्शन गर्भस्थ शिशु  तक पहुंच जाता है। इसी तरह मां से किया संवाद गर्भ तक पहुंच जाता है। माँ की आंख से बच्चा देखता है, मां के कान से सुनता है, मां के मन में उठ रहे विचार बच्चे के अंदर भी वही भाव उतपन्न करते है। माँ जो नया कुछ सीखती है वो बच्चा भी सिखता है।

गर्भावस्था में मां को मधुर संगीत सुनना चाहिए, अच्छे शब्दों वाले गीत गुनगुना चाहिए। महापुरुषों की कहानियां बोलकर पढ़ना चाहिए। गर्भस्थ शिशु से पिता को भी बातें करनी चाहिए, उसे रोज बाल निर्माण की कहानियां सुनाना चाहिए। बच्चे को गर्भ से ही जिंदगी में उसकी उपस्थिति और परिवार का सदस्य होने की अनुभूति करवाइये।

जैसे बेल बजी और पतिदेव घर आये, तो मां पेट पर हाथ रख के बोले बेटा आपके पापा घर आ गए। पिता बोले बेटा मैं घर आ गया। जब भोजन करें तो गायत्री मंत्र बोलने के बाद गर्भस्थ शिशु को बोलें अब मम्मी खाना खाएगी, ये खाना आपको अच्छा स्वास्थ्य देगा। पानी पिएं तो भी बोल के पिये। कोई भी अच्छा कार्य करने के साथ उसे बताते चलें, जिससे सभी गतिविधि सही ढंग से उसके दिमाग़ में रजिस्टर होती रहे। माता-पिता और बच्चे के बीच में सम्बन्ध अच्छे बने।

टीवी-फ़िल्म-सीरियल या घर के लड़ाई झगड़े की आवाज़े और दृश्य गर्भवती मां के सामने न आये। अन्यथा इनका नकारात्मक प्रभाव गर्भस्थ शिशु के दिमाग मे रजिस्टर हो जाएगा।

गर्भ में ही घर के अन्य सदस्य जब बोलें तो माँ बोले ये आवाज तुम्हारी बुआ की ये दादी की आवाज है, ये दादा की आवाज है, ये नाना की आवाज है, ये नानी की आवाज है।

मां को संस्कृत सीखना चाहिए, जोर जोर से संस्कृत के गायत्री  मन्त्र और महामृत्युंजय पढ़ना चाहिए, मन्त्रलेखन करना चाहिए। बच्चे के गर्भ संवाद के दौरान सँस्कार गढ़ने और नई अभिरुचि उसमे पैदा करने का प्रयास करना चाहिए। जिस महापुरुष की तरह बच्चा बनाना चाहते है उनकी जीवनियां पढ़िए। अच्छी नैतिक शिक्षा, मानसिक संतुलन, धार्मिक पुस्तको को बोलकर पढ़िए।

दो मनपसन्द भजन चुन लीजिये, सुबह वाले भजन को सुनते हुए उठिए, और रात वाले भजन को सुनते हुए सो जाइये। जब बच्चा पैदा होगा, तो ज्यो ही उसके कान में सुबह वाला भजन बजेगा वो घड़ी के अलार्म की तरह उसे सुनते ही उठ जाएगा। ज्यों ही रात वाला भजन बजेगा वो लोरी की तरह उसे सुला देगा। क्योंकि जो आदत गर्भ में पड़ती है वो जल्दी छूटती नहीं।

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