प्रश्न – श्वेता बेटा, मेरी माता जी 90 वर्ष की उम्र में महाप्रयाण की, वो बहुत धार्मिक और श्रेष्ठ आत्मा थीं। वृद्धावस्था के अंतिम दिनों में बच्चों की तरह जिद्दी हो गयी थीं। मैं उन्हें बहुत प्यार करती थी,

प्रश्न – श्वेता बेटा, मेरी माता जी 90 वर्ष की उम्र में महाप्रयाण की, वो बहुत धार्मिक और श्रेष्ठ आत्मा थीं। वृद्धावस्था के अंतिम दिनों में बच्चों की तरह जिद्दी हो गयी थीं। मैं उन्हें बहुत प्यार करती थी, उनका ख़्याल रखती थी। मेरी उम्र भी 65+ है और मुझे बैक में स्लिप डिस्क की प्रॉब्लम है, मैं स्वभावतः शांत हूँ, लेकिन माताजी की मृत्यु के कुछ दिन पहले असहनीय बैक पेन के कारण माताजी पर झल्ला उठी, और उसके कुछ दिन बाद माताजी की मृत्यु हो गयी। यह बात मुझे असहनीय पीड़ा दे रही है कि मैंने माताजी से ऊँचे स्वर में बात कर उन्हें समझाया। बताओ इस ग्लानि से मुक्ति कैसे पाऊँ?

उत्तर – दी चरण स्पर्श कर प्रणाम, आप आज के बच्चो के लिए प्रेरणास्रोत हो, कि अपने माता-पिता की सेवा में आप सदा ततपर थे।

दी, वृद्ध और बालक एक समान होते हैं। ज़िद स्वभाब में आ जाता है। आप भी एक इंसान हो, कोई देवता नहीं हो कि जिससे कोई भूल ही न हो।

एक मां बच्चे को जब प्यार करती है, देखभाल करती है तो बच्चे के समय असमय जिद करने पर डांट-फ़टकार भी लगा सकती है। क्योंकि यह डांट-फ़टकार भी भले के लिए होती है। वृद्धावस्था में भी जब आप सेवा कर रहे हो, उनका प्रेमपूर्वक ध्यान रख रहे हो, तो उनके बेसमय जिद करने पर डांट-फ़टकार उनके हितार्थ कर उन्हें गलत करने से रोककर आप उनका भला ही कर रहे हैं।

अत्यधिक चटपटा, अत्यधिक मीठा, देर रात को गरिष्ठ खाना और रात 10 के बाद दूध वृद्ध व्यक्ति के इच्छा के बाबजूद उन्हें देने पर उनके स्वास्थ्य को हानि होगी और उन्हें दर्द उठाना पड़ेगा। उन्हें सुबह और सप्ताह में एक बार चटपटा-मीठा खिला सकते हैं, याद रखें पाचन संस्थान कमज़ोर है और एक समय मे ज्यादा लोड नहीं ले सकता। *सेवा का सौभाग्य समझ के सेवा करें*, समय समय पर ही भोजन, दूध और दवा देना होगा। प्रत्येक डिमांड न बच्चे की पूरी करना चाहिए और न ही वृद्ध की और न ही जीवनसाथी की। क्योंकि इच्छाएं अनन्त है किसी भी इंसान तो क्या भगवान द्वारा भी उसकी पूर्ति सम्भव नहीं है।

अतः ग्लानि न करें, और स्वयं को सम्हालें, याद रखिये भगवान इंसान के कर्मकांड के पीछे भाव देखता है। इसी तरह मृत्यु पश्चात पितर भी कर्मकांड के पीछे के भाव को समझते हैं, उन्हें अनुभूति है कि आपने उन्हें प्यार से वृद्धावस्था में सम्हाला और किन परिस्थितियों में और क्यों और किस ग़लती के सुधार हेतु डांट-फ़टकार का उपयोग लिया। पितर योनि में पितरों को भगवान की तरह ही अपने बच्चों के हृदय के भाव महसूस हो जाते है, जो जीवित रहते हुए नहीं हो पाते। अतः आपकी माताजी आप पर प्रशन्न हैं।

 *निम्नलिखित तरीके से अपनी माताजी को पितृ पक्ष के शुभ अवसर पर या जब भी आपकी सुविधा हो श्राद्ध और तर्पण दें*:-

1- 5 साड़ियां और स्त्री का सृंगार जो आपके बजट में हो उसे खरीदकर घर लेकर आइये, पितृ पक्ष की मातृ नवमी को भोजन बनाकर सबसे पहले बलिवैश्व यज्ञ कीजिये उस भोजन का और प्रार्थना कीजिये। साड़ी अर्पित कीजिये और भोजन का प्रसाद लगाइए और फिर घर के सबसे बड़े सदस्य को भोजन करवाइये।

2- साड़ी और सामान किसी मंदिर में या किसी गरीब स्त्री को दान दे दीजिए।

3- सुविधानुसार *युग गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार* या *गायत्री तपोभूमि मथुरा* या पास के गायत्री शक्तिपीठ जाकर माता जी का तर्पण कर दीजिए, जो कि वहां निःशुल्क करवाया जाता है।

4- एक ध्यान कीजिये – जैसे बच्चे आरोही क्रम और अवरोही क्रम में गिनती पढ़ते है, वैसे ही स्वयं के घटते क्रम में जन्मदिन याद कीजिये- उदाहरण 65-64-63 से 3-2-1 इस तरह माता के गर्भ में प्रवेश कीजिये, फिर गर्भ से बाहर बिना शरीर के शून्य में स्वयं को महसूस कीजिये। बिना शरीर के भी आपका वजूद है। अब पिछले जन्म के शरीर को जलता हुआ महसूस कीजिये और फिर सोचिए वर्तमान शरीर भो इसी तरह जलेगा। अब पुनः माता के गर्भ में प्रवेश कीजिये, और बढ़ते क्रम में जन्मदिन याद करते हुए वर्तमान उम्र तक आ जाइये। मृत्यु औऱ जन्म वास्तव में क्षणिक है, जो जन्मा है वो मरेगा और मरा है वो पुनः जन्मेगा। अतः माताजी आपकी भी नए शरीर मे प्रवेश करेंगी। जिस तरह पिछला जन्म आपको याद नहीं वैसे ही यह नए जन्म में आपकी माता जी आपको और इस जन्म से जुड़े सब रिश्ते भूल जाएंगी। कर्मो का हिसाब सबका चित्रगुप्त और भगवान सम्हालेंगे।

5- दूसरे ध्यान में स्थूल शरीर को घर छोड़कर सूक्ष्म शरीर से *शान्तिकुंज समाधिस्थल* पर जाइये और गुरुदेब का आह्वाहन कीजिये। फिर गुरुदेब से अपनी माता जी को बुलाने की प्रार्थना कीजिये। माता जी की आत्मा के प्रकट होने पर उन्हें जो आप उनके जीते जी जो नहीं कह पाई वो कहिये, उनके चरण छू कर उनसे जाने-अनजाने में हुई भूल हेतु क्षमा मांगिये। उन्हें नए जीवन और नए शरीर की शुभकामनाएं दीजिये, उन्हें भावभरी विदाई दीजिये। और गुरुदेब को प्रणाम कर पुनः अपने शरीर मे वापस आ जाइये।
जब आप इस सूक्ष्म ट्रैवेल एजेंसी से जाकर टाइम ट्रैवेल कर लें, माँ से मिलकर सभी गिले शिकवे दूर करके, मन हल्का हो जाये। तो गुरुदेव को धन्यवाद दें, और इस गुरुदेव की सूक्ष्म ट्रैवेल एजेंसी एजेंट श्वेता चक्रवर्ती को ढेर सारा-प्यार-और आशीर्वाद कमीशन में देना न भूलें।

हम आशीर्वाद रूपी चेक पेमेंट *व्हाट्सएप*, *टेक्स्ट मेसेज* , *फेसबुक कमेंट* में भी खुशी खुशी स्वीकार करते हैं।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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