प्रश्न – दी, पितृपक्ष सम्बन्धी जानकारी दें

उत्तर – आत्मीय बहन, इस वर्ष  25 सितंबर 2018 से 8 अक्टूबर 2018 तक है।

वैसे तो पितृपक्ष में किसी भी दिन नजदीकी शक्तिपीठ, गायत्री युगतीर्थ शान्तिकुंज, और गायत्री तपोभूमि मथुरा जाकर विधिवत श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं।

यदि किन्ही कारण से मन्दिर या तीर्थ स्थल में जाकर तर्पण न कर सकें। तो इन 15 दिनों में घर पर ही गायत्री यज्ञ कर लें, खीर का स्विष्टीकृत होम करें और पितरों को श्रद्धा अर्पण कर दें।

यदि यह भी संभव न हो तो 15 दिन नित्य बलिवैश्व यज्ञ में खीर की आहुति देकर श्रद्धा अर्पित करें।

यदि यह भी सम्भव न हो, तो एक ग्लास जल में थोड़ा गुड़ और काला तिल लेकर उस जल को अंजुलि में लेकर – तीन बार निम्नलिखित बोलकर सूर्य को साक्षी मानकर किसी तुलसी के गमले में डाल दें, गुड़ और तिल न हो तो इसे साधारण जल लेकर ही तीन बार कर लें:-
1- पितर शांत हों शांत हों शांत हों
2- पितर तृप्त हों तृप्त हों तृप्त हों
3- पितर मुक्त हों मुक्त हों मुक्त हों।

अश्वनि माह में पितृ पक्ष और नवरात्र माह पड़ता है। अतः इस महीने किसी भी हालत में जो हिन्दू मांसाहारी है जैसे बंगाल प्रान्त और पंजाब प्रांत के उन्हें मांस भक्षण नहीं करना चाहिए। साथ ही पितृ पक्ष में यदि मजबूरी न हो तो कोई नई वस्तु खरीदकर स्वयँ उपयोग नहीं करना चाहिए। नई वस्तु दान हेतु खरीद के दे सकते हैं।

पितृ पक्ष में वस्तु दान, अन्नदान, ज्ञानदान का सबसे ज्यादा महत्त्व है, अतः यदि कहीं पास में कोई मन्दिर बन रहा हो वहां ईंटे या सीमेंट दान दे कर पुण्य का लाभ ले सकते हैं:-

मन्दिर निर्माण में वस्तु दान हेतु:-   *गायत्री शक्तिपीठ झटीकरा में निर्माणकार्य चल रहा है, कृपया ईंट,रेत बदरपुर, सीमेंट, लोहा(सरिया)आदि  साधन-सामग्री दान देकर निर्माणकार्य में देकर अक्षय पुण्य लाभ ले सकते हैं।*

अन्नदान हेतु – *Bank: STATE BANK OF INDIA
A/C –     VEDMATA GAYATRI TRUST
SBI A/C NO – 10876858311 (11 DIGIT )
Address : SHRAVAN NATH NAGAR, HARDWAR, UTTARAKHAND*
State :       UTTARAKHAND
District     : HARIDWAR
Branch    : HARIDWAR
Contact   : STD:01334227672
IFSC Code : SBIN0002350 (used for RTGS and NEFT transactions)

युगसाहित्य/ज्ञान दान हेतु- BANK NAME-I.O.B.BANK,
BRANCH NAME-YUG NIRMAN YOJANA  TRUST MATHURA,
A/C -144102000002021,
A/C NAME- YUG NIRMAN YOJANA  VISTAR TRUST, MATHURA
I.F.S.CODE NO.- IOBA0001441

पितृपक्ष में पितरों को ऑटोमैटिक दान उम्रभर चलता रहे इस हेतु वृक्षारोपण सबसे उत्तम है:-

पांच पिंडदान के प्रतीक- पांच वृक्ष (पीपल, बरगद, नीम, बेलपत्र, अशोक) के लगा दें। इन वृक्षों के द्वारा दिया ऑक्सीज़न दान का पुण्य आपके पूर्वजों को सदैव मिलता रहेगा।इतना भी न सम्भव न हो तो कम से कम एक जोड़ा अर्थात दो तुलसी के पौधे घर पर गमलों में लगा लें।

हम सब जीवित हों या मृत, दोनों ही अवस्था मे हमारे पास सूक्ष्म शरीर होता है। सूक्ष्म शरीर हमें जीवित हों या मृत दोनों ही अवस्था में प्राप्त होता है जो भावनाओं का आदान-प्रदान करने में सक्षम होता है। प्राचीन धर्म ग्रन्थ और आधुनिक परामनोविज्ञान मरने के बाद भी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है, भावनात्मक आदान-प्रदान को स्वीकार्य करता है।

पुष्प प्रेम नहीं है, अपितु प्रेम प्रदर्शन में सहायक है। पुष्प द्वारा भक्त भगवान को प्रेम अर्पित करता है और प्रेमी प्रेमिका को प्रेम अर्पित करता है। यहां पुष्प कर्मकांड है और प्रेम भावना ही प्रधान है। इसी तरह श्राद्ध और पिंडदान एक कर्मकांड है, लेकिन मूलतः पितरों के प्रति प्रेम और श्रद्धा भावना ही प्रधान है। पितरों का आशीर्वाद सदा फलदायी है। पितर हमारे अदृश्य सहायक होते हैं।

पिता जी या माता जी की मृत्यु किसी भी दिन हुई हो, यदि उन्हें विशेष श्रद्धा अर्पण करना चाहते हैं। तो मातृ नवमी – 3 अक्टूबर को माताजी के लिए विशेष श्राद्ध अर्पण करें, और पितृमोक्ष अमावस्या- 8 अक्टूबर को पिताजी के लिए विशेष श्राद्ध अर्पण करें। अर्पण शब्द जब तृप्ति हेतु किया जाता है तब यह तर्पण बन जाता है। श्राध्द का अर्थ श्रद्धा भावना ही है। माता-पिता और समस्त पूर्वजो का श्राद्ध-तर्पण एक दिन में ही भी कर सकते हैं।

अध्यात्म एक विज्ञान है, जो टैलीपैथी-सूक्ष्म संवाद मन्त्रों के माध्यम से सूक्ष्म जगत से करने में सक्षम होता है। जो इस विद्या से अंजान है उनके कुतर्क करने पर उनसे व्यर्थ न उलझें। जंगल मे निवास करने वाले वो लोग  जिन्होंने कभी मोबाइल देखा ही नहीं और इसके बारे में कोई जानकारी न हो, तो वो मोबाइल की बात करने पर इसे या तो कुतर्क करके असम्भव बताएंगे या इसे चमत्कार की संज्ञा देंगे। छोटी सी बुद्धि जिसे समझ न सके उसे वो दो ही बातें उस सम्बंध में कह सकती है 1- अंधविश्वास या 2- चमत्कार। वास्तव में श्रद्धा अर्पण करना न अंधविश्वास है और न ही चमत्कार। यह एक अध्यात्म विज्ञान है, जो भावनात्मक आदान-प्रदान पर निर्भर है। सभी धर्मों में इसका प्रतीक पूजन और प्रेयर का विधान मौजूद है।

भारत से अमेरिका जाना हो तो करेंसी तो बदलना पड़ेगा- रुपयों को डॉलर में बदलना पड़ेगा। इसी तरह अमेरिका से भारत आना है तो डॉलर को रूपयों में बदलना पड़ता है। सूक्ष्म जगत की करेंसी पुण्य होती है, जिसे हम दान-तप द्वारा अर्जित करते है। वह पुण्य करेंसी सूक्ष्म जगत में हस्तांतरित की जा सकती है।

*गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों के साथ हम न केवल हाइपोथैलेमस का आह्वान करते हैं, बल्कि सभी 24 ग्रंथियां, जो हमें मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से, वैश्विक ऊर्जा के माध्यम से* *भावनात्मक रूप से ठीक करती हैं।*

पितृ पक्ष में अधिक से अधिक पूजा पाठ और दान पुण्य करना चाहिए।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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