प्रश्न – शारदीय नवरात्र 2018 कब से कब तक है, कलश स्थापना मुहूर्त कब का है? गायत्री अनुष्ठान के लिए सङ्कल्प कल लें और पूर्णाहुति कब करें।
उत्तर – आत्मीय भाई, हिन्दू धर्म मे ब्रह्मुहूर्त सिद्ध माना जाता है। अतः जो साधक ब्रह्मुहूर्त में नित्य पूजन करते है, वो सुबह ब्रह्ममुहूर्त में गायत्री जप अनुष्ठान एवं व्रत का संकल्प ले सकते हैं। लेकिन यदि आप चाहें तो अनुष्ठान व्रत का समूह में सङ्कल्प एक दिन पूर्व मंगलवार 9 अक्टूबर शाम को ले सकते हैं।
नवरात्र व्रत बुधवार 10 अक्टूबर अश्वनि शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारम्भ है और गुरुवार 18 अक्टूबर अश्वनि शुक्ल पक्ष नवमी तक है। दशहरा 19 अक्टूबर शुक्रवार को है।*
अश्वनि शुक्लपक्ष प्रतिपदा तो 9 अक्टूबर सुबह 9 बजकर 16 मिंनट पर ही लग जायेगा। लेकिन हिदू धर्म मे जिस तिथि में सूर्य का उदय होता है, उस तिथि की मान्यता और व्रत उसी दिन से माना जाता है। अतः इस नियमानुसार 10 अक्टूबर को सूर्योदय प्रतिपदा तिथि में है। व्रत 10 अक्टूबर से शुरू होगा शान्तिकुंज हरिद्वार पंचांग के अनुसार। नवरात्र 9 दिन का है इस बार और द्वितीया तिथि में सूर्योदय न होने के कारण वह तिथि नहीं है। पंचमी तिथि में दो बार सूर्योदय होने के कारण पंचमी तिथि दो दिन है।
शारदीय नवरात्रि 2018 कलश स्थापना मुहूर्त
घट स्थापना तिथि व मुहूर्त – 06:22 से 07:25 (10 अक्तूबर 2018)
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 09:16 (09 अक्तूबर 2018)
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 07:25 (10 अक्तूबर 2018)
*नौ देवियां और उनके दिन*
प्रथम – शैलपुत्री – इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है। (बुध 10 अक्टूबर)
द्वितीय -ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।(बुध 10 अक्टूबर)
तृतीय – चंद्रघंटा – इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।(गुरु 11 अक्टूबर)
चतुर्थ – कूष्माण्डा – इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।(शुक्र 12 अक्टूबर)
पंचमी – स्कंदमाता – इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।(शनि 13 अक्टूबर एवं रवि 14 अक्टूबर)
षष्ठी – कात्यायनी – इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।(सोम 15 अक्टूबर)
सप्तमी – कालरात्रि – इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।(मंगल 16 अक्टूबर)
अष्टमी – महागौरी – इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।(बुध 17 अक्टूबर)
नवमी – सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली(गुरु 18 अक्टूबर)
गर्भ में कन्या भ्रूण हत्या करवाने वाले और कन्या के पिता को मजबूर करके दहेज लेकर बहु लाने वाले परिवार पर दुर्गा माता कुपित होती हैं। ऐसे पापियों की पूजा नहीं स्वीकारती।
बेटियों को गर्भ में मारोगे तो कन्यापूजन और भोजन हेतु कन्या कहाँ से लाओगे?
माता कहती हैं:-
निर्मल मन जन सो मोहिं पावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा,
श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन