प्रश्न – हमें किसी की प्रतिक्रिया को कितना महत्त्व देना चाहिए? और कब इग्नोर करना चाहिए। मार्गदर्शन करें

उत्तर – प्रिय आत्मीय भाई, एक कहानी सुनो:-

एक गुरु के दो शिष्यों में एक चित्रकार ने बहुत सुंदर पेंटिंग बनाई, और एक कथाकार ने उस पर आधारित बहुत सुंदर कहानी लिखी। अब दोनों को अपनी अपनी कला पर लोगों की प्रतिक्रिया/लाइक्स/कमेंट जानना था।

अतः दोनों ने रेलवे स्टेशन पर अपनी अपनी कला को प्रदर्शित किया। साथ ही लिखा कि यदि कहीं कोई गलती/त्रुटि लगे तो टिक मार्क्स कर दें। सुबह से शाम तक लोगों ने प्रतिक्रिया दी। शाम को जब दोनों ने अपनी अपनी कला देखी तो रो पड़े। हज़ारों जगह ग़लती/त्रुटि के टिक लगे थे। कहानी में भी कुछ यही हाल था। दोनों गुरुजी के पास पहुंचे और सब हाल सुनाया।

गुरुदेब ने कहा, बेटा कल जैसा मैं बोलूं वैसा करना। अपनी पेंटिंग के साथ तीन खाली फ्रेम और कलर ले जाकर वहां रख देना। और लिखना यदि मेरी पेंटिग में कहीं गलती/त्रुटि लगे तो सही पेंटिंग इन फ़्रेम में बना दें। यही तुम अपनी कहानी के साथ करो। दूसरे दिन दोनों ने ऐसा ही किया। आश्चर्य आज प्रशंशा के बोल ही लिखे थे। कहीं कोई गलती/त्रुटि का टिक नहीं लगा था। सभी खाली फ़्रेम ज्यों के त्यों थे। साथ ही पेंटिंग और कहानी दोनों अनछुई साफ़ सुथरी ज्यों की त्यों थी।

इसका कारण गुरुदेव से शिष्यों ने पूँछा, तो गुरुदेब ने बताया जो ज्ञानी उस सब्जेक्ट का होता है केवल उसी की प्रतिक्रिया को हमें महत्तव देना चाहिए। अन्यथा इग्नोर करना चाहिए।

इसी तरह भाई यदि कभी किसी की अपने काम मे प्रतिक्रिया चाहते हो तो केवल उस सब्जेक्ट के एक्सपर्ट से सलाह लेना/प्रतिक्रिया लेना। लेकिन यह भी याद रखना वो एक्सपर्ट आपका कम्पटीटर नहीं होना चाहिए।

बाकी सब को इग्नोर करो और आगे बढ़ो। जिंदगी में केवल सद्गुरु, माता-पिता, दादा-दादी और आपको प्यार करने वाले लोगों के अतिरिक्त कोई आप की उन्नति बर्दाश्त नहीं कर सकता। अतः अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहें, क्या कहेंगे लोग उसे इग्नोर करें।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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