गायत्री जयंती एवं दशहरा की शुभकामनाएं

*गायत्री जयंती एवं दशहरा की शुभकामनाएं*

*गंगा* का जल और कृपा स्वर्ग में देवताओं के पास थी, *भागीरथी* के तपबल से ही जनसामान्य को गंगा जी का जल मिला और कृपा मिली। इसी तरह *गायत्री की शक्ति* और कृपा भी देवताओं और विशिष्ठ ऋषियों के पास थी, *युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के तपबल और अथक प्रयास से* वो जनसामान्य को लाभ मिला और महिलाओं को गायत्री जप का अधिकार मिला।

आध्यात्मिक वैज्ञानिक युगऋषि ने  गायत्री मंत्र रूपी आध्यात्मिक फ़ार्मूले को देकर जीवन की समस्त समस्याओं के समाधान के साथ साथ आंतरिक सुकून, शांति और आनन्द की कुंजी भी दे दी।

गायत्री मंत्र के भावार्थ में ही छुपा जीवन रहस्य बता दिया। गायत्री योग और यज्ञ का मर्म भी समझा दिया।

*ॐ भूर्भुवः स्व: तत सवितुर्वरेण्य भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात।*

इस मंत्र का भावार्थ बताते हुए परम् पूज्य गुरुदेव ने कहा- *तत्सवितुर्वरेण्यं* उस सविता शक्ति को वरण कर अपनी चेतना में धारण करो। जिस प्रकार विवाह के बाद स्त्री पुरुष दो शरीर एक जान हो जाते है। वैसे ही आत्मा का परमात्मा से विवाह जानो। भक्त भगवान एक, साधक सविता एक। समिधा की तरह यज्ञ में आहूत हो यज्ञ बन जाओ, जब एक बन गए तो अब नेक्स्ट क्या करना है। *भर्गो देवस्य धीमहि* – जब सविता का तेज धारण करलो तो उस तेज से अपने समस्त विकारों को नष्ट कर दो। और दैवीय गुणों से सम्पन्न स्वयं को बना लो। *धियो योनः प्रचोदयात* – सविता का तेज आत्मा में वरण कर, दैवीय गुणों को धारण कर, सन्मार्ग की ओर कदम बढ़ाओ, और दूसरे भूले भटको को भी राह दिखाओ।

गायत्री मन्त्र भावार्थ और सन्देश कविता में भी प्रस्तुत है:-

*प्राणस्वरूप* परमात्मा के,
*प्राणवान सन्तान* बनो,
*तेजस्वरूप* परमात्मा के,
*तेजस्वी सन्तान* बनो।

*दुःख नाशक* परमात्मा के,
*दुःख दूर करने वाली सन्तान* बनो,
*सुख स्वरूप* परमात्मा के,
*आत्मीयता विस्तार करने वाली सन्तान* बनो।
,

*श्रेष्ठ दिव्य* परमात्मा के,
*श्रेष्ठ गुण सम्पन्न* पुत्र बनो,
*तेजस्वी* परमात्मा के,
*तेजस्वी वर्चस्वी* पुत्र बनो।

*पापनाशक* परमात्मा के,
*अनीति से लोहा लेने वाले पुत्र* बनो,
*देवस्वरूप* परमात्मा के,
*दैवीय गुण धारण करने वाले* पुत्र बनो।

*जैसा परम् पिता है*,
*वैसा ही बनने का प्रयास करो*,
उसकी सृष्टि संचालन में,
तन मन धन से सहयोग करो।

उसको हृदय में धारण कर,
सन्मार्ग का चयन करो,
मनुष्य में देवत्व उदय,
और धरती में स्वर्ग अवतरण हेतु,
हर सम्भव प्रयास करो।

कण कण में संव्याप्त यज्ञमय सृष्टि में,
सत्कर्मो को आहुत करो,
सूर्य न बन सको तो कोई बात नहीं,
दीप बन कर ही जलने का प्रयास करो।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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