समस्या – सौतेली माता के दुर्व्यवहार से हम भाई बहन दुःखी हैं, घर मैंने छोड़ दिया है लेकिन मन अशांत है। मार्गदर्शन कीजिये।

समाधान – *प्रिय आत्मीय बेटे, आपकी समस्या मन से है तन से नहीं।* क्योंकि दुर्व्यवहार से उपजा कष्ट मन में पीड़ा दे रहा है। घर के त्यागने से मन की पीड़ा शांत नहीं होती। मन में तो वो बातें और व्यवहार टीवी चैनल और रेडियो की तरह निरन्तर बज रहा है। शोर तो मन के भीतर है, बाहर नहीं।

*अब थोड़ा ध्यानस्थ होकर, समय यात्रा करो मन से, और उस समय पहुंचो जब तुम्हारे पिता दूसरी शादी करने जा रहे हैं।*

तुम्हारी दूसरी माता जो कि अभी कुँवारी कन्या है, उसके मन में सपनों को पढ़ो। उसका मन चाहता है कि उसे खूब प्यार करने वाला श्रेष्ठ और कुँवारा वर मिले। विवाह एक ऐसी चीज़ है जहाँ चाहे लड़की हो या लड़का दोनों फ्रेशर चाहते है एक्सपीरियंस होल्डर नहीं।

अब तुम्हारी दूसरी माता के स्वप्न टूट रहे है और मन चीत्कार कर रहा है, वो तुम्हारे पिता से जबरजस्ती विवाहबन्धन में बन्ध रही है। उसके माता-पिता और उसका भाग्य उसे इस बन्धन में बांध रहा है और सांसारिक मन इस रिश्ते को जिसमें पति विधुर और कई बच्चो का पिता है उसे नकार रहा है।

जब दुःख, विक्षोभ, ग्लानि, क्रोध, प्रताड़ना से भरी लड़की, दूसरी माता के रूप में माता जैसा पवित्र प्रेम कैसे तुम सब पर उड़ेले? घृणा भरे मन से प्रेम कैसे उपजेगा? जिसके पास जो होगा वो वही तो तुम्हे देगा।

*तीन गुब्बारे लो एक में हवा, दूसरे में सादा जल और तीसरे में रंगीन पानी भरो।* अब तीनो में पिन चुभोकर देखो। जिसमें जो भरा था वो निकला। इसी तरह मनुष्य के मन मे जो भरा होगा वो वही स्वभाव और व्यवहार द्वारा निकालेगा।

*ज़रा सोचो, तुम्हारे  पिता यदि कुँवारे होते और उनका पहला विवाह ऐसी लड़की से होता जिसके पति की मृत्यु हो गयी हो और उनके कुछ बच्चे हों। तो क्या तुम्हारे सांसारिक पिता वैसी ही हरकत न करते जैसी तुम्हारी दूसरी माता कर रही है? स्वयं विचार करो..*

बेटे *अपनी सगी मां इसलिए हमें प्रेम कर पाती है क्योंकि उसके रक्त मांस से हम जन्मते हैं, हमे जन्म देने से पूर्व ही उसका भावनात्मक रिश्ता जुड़ जाता है। उसका प्रेम ही उसके रक्त को दूध में बदल देता है।* प्रेम मां के हृदय का 9 महीने गर्भ धारण का कष्ट, प्रसव पीड़ा का कष्ट और दो वर्ष तक पॉटी साफ करने और लालन पालन का कष्टसाध्य कर्मो को करने का बल देता है।

यदि तुम्हारी माँ को ही *दूसरे का बच्चा पालन पोषण को दे देते* तो वो भी उतने उमंग उत्साह से उन बच्चों को न पाल पाती जितने उमंग-उत्साह से स्वयं का बच्चा पालन किया।

केवल सन्त हृदय और आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाले लोग ही दूसरे के बच्चे को भी सच्चा मातृत्व या पितृत्व का प्रेम दे पाते है। अन्यथा तो घृणास्पद बोझ समझ कर व्यवहार ही करते देखे जाते है।

प्रिय बेटे, अपनी सौतेली माता पर दया करो न कि उस पर घृणा करो। वो सांसारिक स्त्री है उससे उच्च आत्मीयता और मातृत्व व्यवहार जैसे अमूल्य निधि की अपेक्षा करना व्यर्थ मानो। उसके मानसिक घावों का अवलोकन करके उसे उसके कुव्यवहार के लिये क्षमा कर दो और उससे सहजता और निःस्वार्थ भाव से क्षमा मांग लो।

अपनी नई जिंदगी नए स्वस्थ दृष्टिकोण के साथ प्रारम्भ करो, और जिंदगी में आगे बढ़ो।

जब हम बीमार होते है तो हम दोषारोपण में समय नष्ट न करके, बीमारी के इलाज़ हेतु प्रयत्नशील हो जाते हैं। इसी तरह तुम्हारे घर के सम्बंध बीमार है तो इनके उपचार हेतु प्रयत्नशील हो जाओ। यदि गाय सींग मारने वाली हो तो उसे चारा दूर से ही खिलाना चाहिए। यदि माता का व्यवहार अति कष्टदायी है तो उनसे रिश्ता तो भी न तोड़े, दूर से ही सही रिश्ता जरूर निभाएं।

बिगड़े रिश्ते गन्दे पानी की तरह कभी कभी हो जाते हैं, उसे प्योरिफाई आत्मीयता से करने की कोशिश करें।यदि पानी स्वच्छ न भी हुआ तो भी उसे फेंकना नहीं चाहिए, पीने के काम न भी आया तो आग बुझाने के काम जरूर आता है।

सर्वप्रथम स्वयं को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाओ और जल्दी से जल्दी अपने भाई बहनों का उत्तरदायित्व स्वयं उठा लो। घर से दूर जॉब करो। फोन द्वारा, पत्र व्यवहार और SMS द्वारा निरंतर माता-पिता के सम्पर्क में रहो। उनको जब भी जरूरत हो उनकी मदद करने के लिए तैयार रहो।

इसे पढ़कर समझकर जिंदगी में अमल लाओगे, स्वयं का आध्यात्मिक दृष्टिकोण विकसित कर आत्मीयता का विस्तार आत्मविश्वास के साथ करोगे। तो मन स्वतः शांत हो जाएगा। जीवन में आनन्द ही आनंद रहेगा।

दूसरों से लड़ने पर और उसे हरा देने पर अहंकार जरूर सँतुष्ट हो सकता है लेकिन आत्मा कभी सन्तुष्ट नहीं होती, इससे उसका भार कभी नहीं जाता। लेकिन यदि किसी को भगवान बुद्ध की तरह करुणा से क्षमा कर दो तो आत्मा का बोझ उतर जाता है। आत्म सन्तुष्टि मिलती है। मन शांत और हल्का महसूस होता है।

बेटा आप ये  पुस्तकें जरूर पढ़ें:-

1- भावसम्वेदना की गंगोत्री
2- मित्रभाव बढ़ाने की कला
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- गहना कर्मणो गतिः
5- हम सुख से वंचित क्यों है?

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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