सद्-बुद्धि सद्भाव दीपयज्ञ – सबके उत्तम स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य के लिए
|| सद्-बुद्धि सद्भाव दीपयज्ञ – सबके उत्तम स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य के लिए ||
22 jun – गंगा दशहरा / गायत्री जयंती के उपलक्ष्य मेंदीपयज्ञ एक कम खर्चीला भावपूर्ण स्वचालित सुगम आहुति सिस्टम है। जिसमें यज्ञ का पूर्ण लाभ मिलता है। गायत्री मंत्रों के साथ भावपूर्ण इदं न मम की भावना के साथ आहुती दी जाती है । आज संसार में हर तरफ़ स्वार्थ का यह मेरा है का भाव है। गायत्री परिवार परमार्थ का सूत्र दे रहा है इदं न मम अर्थात् यह मेरा नही ईश्वर तुम्हारा है| दीपयज्ञ के लाभ – प्रदूषण को भी कम करता है और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है, गाय का घी रोगाणुओं को भगाता है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है|तीन प्रमुख नाड़ियां है – चंद्र नाड़ी, सूर्य नाड़ी तथा सुषुम्ना नाड़ी। शरीर में चंद्र नाड़ी से ऊर्जा प्राप्त होने पर मनुष्य तन एवं मन की शांति को महसूस करता है। घी से जलाया हुआ दीपक शरीर की तीनों प्रमुख नाड़ियों को जागृत करता है|
मध्यप्रदेश में तो ५१ हजार घरों में एक साथ एक समय पर यह दीप् यज्ञ होगा |
दिल्ली एनसीआर में भी घर घ दीप यज्ञ किये जायेंगे | आप इस मेसेज को प्रिंट करके या फारवर्ड करके अपने क्षेत्र में भी यह श्रंखला अपने क्षेत्रों में चलायें और अपने नजदीकी शक्तिपीठ में सब अपने नाम नोट करवा दें | फिर समस्त दीपयज्ञ की संख्या शांतिकुंज यूथ सेल को ईमेल कर दें | इस अभियान की सफलता में सहयोग करें |
ch। दीपयज्ञ हेतु व्यवस्था –सामग्री – एक थाली में पांच दिया, पांच अगरबत्ती और स्टैंड, रोली (तिलक), चावल(अक्षत जो टूटे न हों), एक लोटे/ कटोरी/ गिलास में जल व चम्मच, पुष्प (व्यवस्था न हों तो अक्षत को हल्दी से पीला कर के रख लें) व प्रसाद में (मिश्री, गुड़ या जो भी सम्भव हो)|
दीप यज्ञ विधि (दीप यज्ञ में समय/अवधि : शाम ७ से ७:१५ पूजन, ७:१५ से ७:३० सामूहिक गायत्री जप, रात्रि ७:३० से ८:०० बजे तक दीप यज्ञ )
१- सुबह नहा धो लें और मन में भक्तिभाव का संचार करें
२- सपरिवार और अन्य ईष्ट मित्रों के साथ बताई गयी सामग्री के साथ पूजन स्थल जो तय किया हुआ हो वहाँ आसन/दरी/चटाई पर बैठ जाएँ|
३- छोटी सी भगवान की फोटो एक चौकी में रख लें और उसके समक्ष भगवान का ध्यान रखते हुए गायत्री मन्त्र बोलते हुए घी का दीपक जला लें|
४- पवित्रीकरण – सभी सदस्य अपने हाथ में जल लें, एक व्यक्ति निम्नलिखित पढ़कर बोलें बाकी सब दोहराएँ
“हमारा शरीर, मन एवं अन्तःकरण धुल रहा है, जिससे हमारे आचरण, विचार व भावनाएं पवित्र हो रही हैं|”
पवित्रता की भावना करते हुए सभी अपने शरीर पर छिड़क लें |
५- तिलक – रोली को गीला कर लें और अनामिका अंगुली में लगा कर रख लें
“हमारा मस्तिष्क शांत रहे, इसमें विवेक सदैव बना रहे|”
यह भाव रखते हुए एक दुसरे के मष्तिष्क पर स्नेह एवं सम्मान के साथ रोली/चन्दन लगायें |
६- देव आवाहन – सभी हाथ जोड़कर भावना पूर्वक सभी देव शक्तियों का आवाहन करे व सर झुककर प्रणाम करे| एक व्यक्ति पढ़कर निम्नलिखित सूत्र सभी दोहराएँ :-
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः / आवाहयामि/ स्थापयामि/ ध्यायामि| ततो नमस्कारं करोमि|
देवप्रतिमा को तिलक चन्दन करके पुष्प और अक्षत समर्पित करें
७- दीप प्रज्ज्वलन –गायत्री मंत्र बोलते हुए २४ दीपकों को जला लें/प्रज्ज्वलित कर लें| २४ दीपक का इंतजाम न हो तो ५ दीपक ही जला लें | कोई छोटा सा माता गायत्री का भजन गा लें|
८- प्राण पर्जन्य की वर्षा के लिए , विश्व में शांति के लिए, सबकी सद्बुद्धि और उज्जवल भविष्य के लिए और सबके जीवन में ख़ुशहाली के लिए ५ या ११ या २४ बार गायत्री मन्त्र से और ५ या ११ या २४ बार महामृत्युन्जय मन्त्र जपें और भावनात्मक आहुतियाँ अर्पित/आहूत करें
गायत्री मन्त्र – “ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्”
महामृत्युन्जय मन्त्र – “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्”
९- पूर्णाहुति:- अक्षत लेकर निम्नलिखित मंत्र बोलकर दीपक की थाली में आहुति दे देवें, और आरती गा लें |
“ॐ सर्वं वै पूर्ण ग्वंग स्वाहा|
१०- शांति पाठ : लोटे के जल को सभी के उपर छिडकें औरहाथ जोड़कर सभी निम्न प्रार्थना दोहराएँ
“ॐ शांतिः शांतिः शांतिः| सर्वारिष्ट सुशान्तिर्भवतु||
११- सूर्य अर्घ्य ध्यानं– शेष बचा हुआ जल सूर्य भगवान को अर्घ्य के रूप में चढ़ा/समर्पित कर दे और सूर्य भगवान से विश्व के पोषण और विश्व की रक्षा हेतु प्रार्थना करें|
“ॐ सूर्यायै नमः | आदित्यायै नमः | भाष्करायै नमः ||
१२- भावनात्मक देवशक्तियों को प्रणाम – अभिवादन करते हुए विदाई दे दें | सभी को प्रसाद वितरित कर दें |
कोई अच्छी ज्ञान वर्धक साहित्य जैसे अखंडज्योति पत्रिका, युगनिर्माण, प्रज्ञा पुराण का सामूहिक स्वाध्याय भी कर लें| अच्छे प्रेरक प्रज्ञा गीतों का सामूहिक भजन करें |
यज्ञ विस्तार से करने हेतु – पुस्तक युगयज्ञ पद्धति का प्रयोग करें
(http://literature.awgp.org/book/deep_yagya/v6.1 )