लोककल्याणार्थ श्रेष्ठ भाव से की गयी हिंसा धर्म है

अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव च:।

(अर्थात् यदि अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है)

ऐसी हिंसा श्रेष्ठ है जिससे अहिंसा का जन्म हो, वह युद्ध श्रेष्ठ है जिसमें लोकल्याण का भाव निहित हो। 18 हज़ार अक्षौह्णी सेना के वध के बाद भी अर्जुन को कोई पाप नहीं लगा कैसे? भगवान कृष्ण ने अर्जुन का सारथि बनना स्वीकार क्यूँ किया?

धर्म क्या है? –  वैसे तो “धर्म” शब्द नाना अर्थों में व्यवहृत होता है पर दार्शनिक दृष्टि से धर्म का अर्थ स्वभाव ठहराता है। अग्नि का धर्म गर्मी है अर्थात् अग्नि का स्वभाव उष्णता है । हर एक वस्तु का एक धर्म होता है जिसे वह अपने जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त धारण किए रहती है । मछली का प्रकृति धर्म जल में रहना है सिंह स्वभावत: मांसाहारी है। हर एक जीवित एवं निर्जीव पदार्थ एक धर्म को अपने अन्दर धारण किए हुए है । धातुऐं अपने- अपने स्वभाव धर्म के अनुसार ही काम करती हैं। धातु – विज्ञान के जानकार समझते हैं कि अमुक प्रकार का लोहा इतनी आग में गलता है और वह इतना मजबूत होता है उसी के अनुसार वे सारी व्यवस्था बनाते हैं। यदि लोहा अपना धर्म छोड़ दे कभी कम आग से गले कभी ज्यादा से इसी प्रकार उसकी मजबूती का भी कुछ भरोसा न रहे तो निस्संदेह लोहकारों का कार्य असम्भव हो जाय। नदियाँ कभी पूरब को बहे कभी पश्चिम को अग्नि कभी गरम हो जाय कभी ठण्डी तो आप सोचिए कि दुनियाँ कितनी अस्थिर हो जाय। परन्तु ऐसा नहीं होता विश्वास का एक- एक परमाणु अपने नियम धर्म का पालन करने में लगा हुआ है, कोई तिल भर भी इधर से उधर नहीं हिलता ।। धर्म रहित कोई भी वस्तु इस विश्व में स्थिर नहीं रह सकती। बहुत काल की खोज के उपरान्त मनुष्य का मूल धर्म मालूम कर लिया गया है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सम्पूर्ण मनुष्य अपने मूलभूत धर्म का पालन करने में प्रवृत्त रहते हैं। आपको यह सुनकर कि कोई भी मनुष्य धर्म रहित नहीं है, आश्चर्य होता होगा इसका कारण यह है कि आप मनुष्य कृत रीति- रिवाजों मजहबों, फिरको, प्रथाओं को धर्म नाम दे देते है।

सभी मनुष्य चाहे वो स्त्री हो या पुरुष या किन्नर सभी को जीने का अधिकार है। उसकी ईच्छा के विरुद्ध उसका किसी भी प्रकार का शोषण अधर्म है। किसी की ईच्छा विरुद्ध उसका धन या मान-सम्मान छिनना अधर्म है। किसी को स्वार्थ प्रेरित हो शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक यातना देना अधर्म है।

महाभारत मात्र द्रौपदी के चीर हरण हेतु नहीं लड़ा गया था और ना ही भाई-भाई और सम्पत्ति अधिकार का युद्ध था। द्रौपदी चीरहरण तो उस वक़्त के नारी समाज की दुर्दशा का दर्पण मात्र था, अधर्म से स्त्री की ईच्छा विरुद्ध दासत्व, शील भँग इत्यादि का आतंक था। अर्जुन इस आतंक से समाज को मुक्त करना चाहता था इसलिए भगवान कृष्ण ने अर्जुन से आतताइयों और उनके सहयोगियों का वध करने को कहा। इसलिए महाभारत एक धर्म युद्ध हुआ और इस हेतु की गई हिंसा भी अहिंसा हुई।

जो कायर अपराधियों को क्षमा, दुराचारियों के सम्मुख मौन रह के समर्थन, गुंडों को देख के छिप जाना, स्त्री के शीलभंग या किसी निर्दोष की हत्या के समय कोई प्रतिक्रिया नहीं करते इनकी अहिंसा भी हिंसा है। और इन्हें पाप लगेगा।

जिस प्रकार डॉक्टर रोगी के चीरफाड़ करके रोगमुक्त करता है, उसी प्रकार धर्मयुद्ध महाभारत में समाज के दर्द देने वाले फोड़ो कौरवों का ऑपरेशन किया गया और पुनः भारतीय समाज को रोगमुक्त किया गया। भारतीय सेना आतंकियों को मारकर ऑपेरशन करके भारत को दर्द देने वाले फोड़ो को निकालती है। अतः ये हिंसा भी अहिंसा है और धर्म है।

लेकिन यदि कोई सैनिक स्वार्थवश यूँ ही किसी व्यक्तिगत कारण से किसी का वध करता है तो यह हिंसा पाप होगी।

लोककल्याणार्थ श्रेष्ठ भाव से की गयी हिंसा धर्म है, मनुष्य के लिए श्रेष्ठ है, इससे कोई पाप नहीं लगता।

कायरता और स्वार्थ में अपनी जान बचाने हेतु की गयी अहिंसा अधर्म है, दुराचारियों का विरोध न करना अधर्म है, और इससे पाप लगेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

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