युगनिर्माण – आत्मियता विस्तार

दिल्ली एनसीआर को पूरे भारत देश मे क्रांति लानी है। हम सब गुरुदेब के अंग अवयव हैं। इसमें हमारी महत्त्वपूर्ण है।

आत्मियता विस्तार से ही युगनिर्माण सम्भव है। भाव सम्वेदना की गंगोत्री पुस्तक में गुरुदेव ने यही मूलमंत्र दिया है।

यदि आप गुरु से प्रेम करते है, तो सबसे पहले उनके विचारों से प्रेम करना होगा।

गुरूदेव का संदेश रोज क्या सुनते है, क्या नित्य 30 मिनट गुरुदेब का ध्यान करते हैं? उनकी सुनते है?

क्या क्रांतिधर्मी साहित्य का सेट आपके घर है? क्या कम से कम 30 मिनट रोज गुरुदेब के साथ समय व्यतीत कर रहे हैं? उनके साहित्य का स्वाध्याय करके उनसे मिलते है? क्योंकि गुरु का सान्निध्य उनके विचारों से ही मिलेगा।

युगनिर्माण हेतु सप्ताह में कम से कम एक बार किसी नए व्यक्ति से युगनिर्माण की चर्चा करते है। क्या उन्हें अपने मिशन और गतिविधियों की सूचना देते हैं।

आप जलता हुआ दिया है, लेकिन दिया यदि एक जगह से हिलेगा नहीं दूसरे दिए तक पहुंचेगा नहीं तो दूसरा दिया जला न सकेगा।

किसी से प्रेम करते हो तो समय देना पड़ेगा। बिन समय कोई प्रेम नहीं होता।

गुरु से प्रेम है तो गुरु के विचारों को कम से कम एक नए व्यक्ति तक सप्ताह में एक बार तो पहुंचाओ।

अपने परिजनों को आत्मियता विस्तार से आगे बढ़ाओ। गुरुदेब का यह परिवार का वृक्ष आत्मियता से सींचा गया है। इस वृक्ष को अपने क्षेत्रों में ले गए हो तो वहां गुरु की तरह आत्मियता विस्तार करके इसे सींचो। आत्मियता का विस्तार न हुआ तो वृक्ष सूख जाएगा।

भाव सम्वेदना से और आत्मीयता विस्तार से ही युगनिर्माण संभव है

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