माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान- द्वितीय दिन

कमण्डल अर्थात् पात्रता विकसित करेंगें, माला अर्थात् मन का मनका फेरेंगे, पूरे दिन मन में माँ का मन्त्रोच्चार करेंगें, अपने मन में उठ रहे विचारों के प्रति होश में रहेंगे जागरूक रहेंगे।

ब्रह्म + चारिणी = ब्रह्ममय तपमय श्रेष्ठ आचरण करेंगे।

श्वेत वस्त्र अर्थात् पवित्रता धारण करेंगे, उज्जवल चरित्र का निर्माण करेंगे।

आज कण कण में ब्रह्म के दर्शन करते हुए खुली आँखों से ध्यान करेंगे। जो भी जीव, वनस्पति, व्यक्ति, कीट या पतंगा दिखे, जिसमें भी जीवन है उसमें ब्रह्म है। बिना ब्रह्म के जीवन सम्भव नहीं। श्वांस में प्राणवायु के रूप में ब्रह्म ही प्रवेश कर रहा है और हमें जीवनदान कर रहा है। कण कण में ब्रह्मदर्शन करते हुए नेत्र बन्द कर पूजा स्थली या किसी शांत स्थान पर कमर सीधी कर नेत्र बन्द कर बैठ जाएँ।

जो भी ध्वनि सुनाई दे बाहर की उसे इग्नोर कर भीतर का ब्रह्मनाद सुनने की कोशिश करें। झींगुर जैसी ध्वनि के बीच ब्रह्म नाद के शंख, बाँसुरी, ॐ की झंकार सुनने का प्रयत्न करें। स्वयं को हिमालय की छाया और माँ गंगा की गोद में अनुभव करें। गंगा का शांत शीतल जल और हिमालय की सफ़ेद आभा में भी गुंजरित ब्रह्मनाद सुने। कल्पना करें क़ि आप शिशु रूप में हो गए हैं कमल आसन में विराजमान माँ ब्रह्मचारिणी जगत जननी की गोद में हैं। माँ ओंकार की ध्वनि कर रही है जो आपके कानो को सुनाई दे रहा है, माँ प्यार से आपका सिर सहला रही हैं। फ़िर आपके आँखों पर हाथ रख आपको दिव्य दृष्टि प्रदान कर रही हैं, अब आप धीरे धीरे नेत्र खोल रहे हैं। अरे ये क्या प्रकृति के कण कण में माँ जगतजननी के आपको दिव्य दर्शन हो रहे हैं और कानों में ब्रह्मनाद सुनाई दे रहा है। इस ध्यान के क्षण में खो जाइये।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *