माँ चन्द्रघण्टा का ध्यान-तृतीय दिन

देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है।  इनके दस हाथ हैं।

पांच ज्ञानेन्द्रियाँ :- आँख  नाक जीभ  कान  त्वचा पांच कर्मेन्द्रियाँ :- हाथ (हस्त)  पैर(पाद)  जीभ(वाक्)  उपस्थ (मूत्र द्वार) गुदा(मलद्वार) इन्ही के समूह को दस इन्द्रियां भी कहा जाता है ।

माँ का स्वरूप कहता है क़ि चंद्रमा की तरह शीतल मस्तिष्क, घण्टे की तरह मधुर स्वर, दसों इन्द्रियों को नियंत्रित करके मनुष्य, सिंह जैसे जंगली जीव को वश में करके उस पर भी सवारी कर सकता है। अर्थात् घर के सदस्य हों, ऑफिस के सदस्य हों या समाज में अन्य कोई उसे हैंडल किया जा सकता है।

ध्यान – भावना कीजिये आसमान में पूर्ण शरद पूर्णिमा चाँद खिला हुआ है, गहरा नीले रंग का साफ़ आसमान तारों से भरा हुआ है। चाँद की दूधिया रौशनी हमारे पूरे शरीर पर पड़ रही है, मधुर मन्द वायु बह रही है। हिमालय के शुभ्र शिखर चन्द्रमा की रौशनी में और श्वेत और चमकीले लग रहे हैं। गंगा के शीतल जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिख रहा है। कानों में घण्टे का मधुर नाद गूँज रहा है। पूर्णिमा के चाँद की रौशनी में माँ भगवती सिंह में सवार होकर हमारे समक्ष आ गयी। हमें शिशु की तरह गोद में उठा कर, प्यार से सर सहलाते हुए सिंह पर बिठा लिया। माँ का सुन्दर स्वरूप देख के हम निहाल हो रहे हैं। आकाश मार्ग से चाँद की  रौशनि में हमें पूरे हिमालय और ब्रह्माण्ड के दर्शन करवा रही हैं। इस ध्यान में खो जाइये।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

सभी बहन भाइयों ने मुझे बताया क़ि मैं जब तक ध्यान की पोस्ट करती हूँ तब तक सबके जप लगभग पूरे हो जाते हैं। अतः मुझे पूर्व सन्ध्या पर ही माँ का ध्यान और फ़ोटो भेजना चाहिए। जिससे सुबह की साधना में वो इस ध्यान को कर सकें।

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