बेटियां समाज का गौरव विषय पर उदबोधन के कुछ बिंदु

प्यारी बेटियों,

1- जिस प्रकार बिना सीमेंट के घर नहीं बन सकता, उसी प्रकार बिना बेटी के घर नहीं बन सकता।

2- सीमेंट घर को मजबूती देता हैं, बेटी का प्यार घर को मजबूती देता है।

3- राष्ट्र की सबसे बड़ी सेवा है, अच्छी सुसंस्कारी बेटियों को बनाना। बेटियां राष्ट्र का गौरव है राष्ट्र निर्मात्री हैं।

4- जिस प्रकार सूखा सीमेंट घर नहीं बना सकता, उसमें जल मिलाने पर वह मजबूती से ईंटे जोड़ता है। उसी तरही स्त्री में भाव सम्वेदना, दया, ममता इत्यादि गुण होने आवश्यक हैं।

5- भगवान अपना सृजन का महान उत्तरदायित्य लड़कियों को दिया है, भगवान के बाद अपने जैसे इंसान को जन्म देना और गर्भ में उसका निर्माण करना केवल स्त्री ही कर सकती है। महान कष्ट उठाकर नया जीवन गढ़ सकती है।

6- पृथ्वी के बाद यदि कोई संसार का भार उठा सकता है तो वो स्त्री ही है।

7- सही अर्थों में बेटी समाज की धरोहर होती है और समाज व देश को बचाने के लिए बेटियों की रक्षा करना जरुरी है। यह तभी संभव हो सकेगा, जब बेटियों के प्रति समाज का नजरिया बदलेगा तथा भ्रूणहत्या, दहेज प्रथा और ख़र्चीली शादी जैसी सामाजिक बुराइयों को जड़ से खत्म किया जाएगा।

8-  बेटियों को स्वयं भी इस दिशा में मिलकर प्रयास करना चाहिए, कुछ ऐसा करना चाहिए कि उन्हें देखकर लोग प्रेरणा लें और बेटियों को पैदा करने पर गर्व महसूस करें।

9- स्त्री को स्त्री का मित्र बनना होगा, प्रत्येक गली शहर मोहल्ले में स्त्री सुरक्षा मंडल होना चाहिए, जिसमें स्त्रियों के अधिकार हेतु लड़कियां आगे आएं।

10- प्रत्येक सरकारी-गैर सरकारी स्कूल में जुडो कराटे स्त्रियों को स्व सुरक्षा हेतु मुफ्त सिखाना चाहिए। मिड डे मील की तरह मिड डे स्वसुरक्षा के गुण सिखाने चाहिए।

11- बेटियों न रूढ़िवादी लोहे की जंजीर में जकड़ो और न ही स्वर्ण-आभूषण और फैशन-व्यसन की सोने की जंजीर में जकड़ो। कैद तो कैद ही होती है, पिंजरा सोने का हो या लोहे का…

12- अपने मान-सम्मान और अधिकारों के लिए एकजुट हो जाओ, साथ ही घर-परिवार-समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्य निभाओ।

13- नारी ही पुरुष की जन्मदात्री है, यदि नारी ठान ले तो दो पल में पूरा समाज बदल के रख दे।

14- संगठन में ही शक्ति है, स्त्रियों का सँगठित होकर अपनी ही स्त्री जाती के उद्धार हेतु आगे आकर नारी जागरण करना चाहिए।

15- बेटियों आप ही हमारे समाज का गौरव हो, आत्मनिर्भर और समुन्नत बनो और आगे बढ़ो।

16- पुरुष बनने की नकल मत करो क्योंकि तुम पुरुषों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो। पुरुष की नकल करना बेवकूफी है, बल्कि स्वयं को स्त्री के रूप में पूर्ण विकसित करना ही अक्लमंदी है। पुरुष बन गई तो सीमेंट का जोड़ने का गुण खत्म हो जाएगा, एक पुरूष जैसी ईंट बनोगी और न दो पुरुष का विवाह सफल हो सकता है, न दो ईंटे स्वयं जुड़ सकती हैं। घर और समाज दोनों बिखर जाएगा। अतः जिन मूल गुणों के साथ परमात्मा ने आपको बनाया है उन्ही गुणों के साथ उन्नति करो।

17- स्वयं पर पूर्ण विश्वास रखो, साहसी बनो और अपने आपको पूर्णता तक ले जाओ। उठो आगे बढ़ो और तबतक मत रुको जब तक मंजिल न मिल जाये।

18- स्वयं को समाज का अभिन्न अंग मानो, स्वयं को ईश्वर का अंश जानो, और समग्रता से स्वयं के निर्माण में जुट जाओ। तुम्हारे निर्माण से भारत का सुनहरा भविष्य जुड़ा है।

19- नित्य मेडिटेशन करो, स्वयं की सम्पूर्ण शक्तियों को पहचानो।

20- अंत मे आप सभी राष्ट्र की निर्मात्री शक्तियों को पुनः उनके गौरव शाली रूप में प्रतिष्ठित होता  हुआ देखू यही कामना है।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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