प्रश्न – 119 चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण में सूतक लगता है, क्या उस दौरान यज्ञ कर सकते हैं?

उत्तर – शास्त्रों के अनुसार चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण के ग्रहण का सूतक लग जाने के बाद मंदिरों में पूजा ही नहीं घर के मंदिरों में भी भगवान की स्थूल कर्मकांड युक्त पूजा नहीं करनी चाहिए। ग्रहण सूतक से लेकर ग्रहण मोक्ष तक देव प्रतिमाओं का स्पर्श भी नहीं करना चाहिए। यज्ञ इत्यादि ऐसे पूजनकर्म जिसमें स्थूल वस्तुओं को हाथ से स्पर्श करके चढ़ाया जा रहा हो वो वर्जित है।

सूतक के दौरान – सूक्ष्म पूजन जैसे मौन मानसिक जप, ध्यान इत्यादि जरूर करना चाहिए। ये हज़ार गुना फ़ल देते हैं।

ग्रहण का सूतक जब समाप्त होता है उसे *मोक्ष* कहते हैं। सूतक समाप्ति पर स्वयं नहाएं, देवप्रतिमाओं को नहलाएं। घर मे गंगा जल छिड़कें। फ़िर यज्ञ करके  घर की शुद्धि करें, सूतक समाप्ति पर किये यज्ञ में खीर या हलवे की आहुति देने पर रोगों से मुक्ति मिलती है और पितृ दोष समाप्त होता है।

प्रश्न- 120-जन्म या मरण में लगे सूतक लगने पर क्या यज्ञ कर सकते हैं? यदि यज्ञ चल रहा हो उसके मध्य सूतक लग जाए तो क्या यज्ञ बीच मे बन्द कर देना चाहिए?

उत्तर – जन्म मरण आदि के कारण सूतक लगता हैं उनमें शुभ कर्म निषिद्ध है। सूतक प्रायः दस (10) दिन का होता है। जब तक शुद्धि न हो जाय तब तक यज्ञ, ब्रह्म भोजन आदि नहीं किये जाते। परन्तु यदि वह शुभ कार्य प्रारंभ हो जाय तो फिर सूतक उपस्थिति होने पर उस कार्य का रोकना आवश्यक नहीं। ऐसे समयों पर शास्त्रकारों की आज्ञा है कि उस यज्ञादि कर्म को बीच में न रोककर उसे यथावत चालू रखा जाय। इस सम्बंध में कुछ शास्त्रीय अभिमत नीचे दिये जाते हैं-

यज्ञे प्रवर्तमाने तु जायेतार्थ म्रियेत वा।
पूर्व संकल्पिते कार्ये न दोष स्तत्र विद्यते।
यज्ञ काले विवाहे च देवयागे तथैव च।
हूय माने तथा चाग्नौ नाशौचं नापि सतकम्।

दक्षस्मृति 6।19-20

यज्ञ हो रहा हो ऐसे समय यदि जन्म या मृत्यु का सूतक हो जाए तो इससे पूर्व संकल्पित यज्ञादि धर्म में कोई दोष नहीं होता। यज्ञ, विवाह, देवयोग आदि के अवसर पर जो सूतक होता है उसके कारण कार्य नहीं रुकता।

प्रश्न – 121- सूतक- आशौच है क्या?

उत्तर – सूर्य या चंद्रग्रहण के दौरान सूतक का समय सूतक अशौच(अशुद्धि) है, या किसी घर में किसी शिशु का जन्म या किसी का निधन हो जाता है उस परिवार के सदस्यों को सूतक या अशुचि (अशुद्धि) की स्थिति में बिताने होते हैं।। धर्म ग्रन्थों में इस स्थिति को आशौच, आशुच्य तो सूतक कहा गया है। निधारित अवधि के बाद शुद्धि कर्म करने पर वे सहज स्थिति  में आते हैं।। शुद्धि के बाद ही परिजन वेदविहित अथवा धार्मिक कृत्यों को सम्पन्न कर सकते है।

🙏🏻श्वेता, दिया

रिफरेन्स – http://l iterature. awgp. org/akhandjyoti/1954/February/v2.14

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