प्रश्न – महापुरूषों और संतों के जीवन का अंत बीमारियों से क्यों?

उत्तर – आत्मीय बहन, आईए इसे प्राचीन धर्म ग्रन्थों से समझते हैं:-

श्रीराम स्वयं भगवान थे, उनकी धर्म पत्नी श्रीसीता जी और उनके अनन्य सेवक श्रीलक्ष्मण जी दोनों का ही उन्होंने त्याग किया। धोबी और राजनीतिक परिस्थिति के कारण श्री सीता जी का त्याग करना पड़ा, यमराज और दुर्बासा ऋषि के श्राप के घटनाक्रम के कारण लक्ष्मण जी का त्याग करना पड़ा। सभी को मृत्यु वरण के लिए विभिन्न समाधि लेनी पड़ी, किसी को जल तो किसी को थल समाधि।

भगवान श्री कृष्ण पूर्व जन्म के बलि रूपी बहेलिए के तीर से मृत्यु वरण किया। पूरा खानदान उनका गृहयुद्ध में मृत्यु को पाया।

भगवान बुद्ध की मृत्यु जहर से हुई।

महर्षि रमण, ठाकुर रामकृष्ण, विवेकानंद, भगवान आदि शंकराचार्य इत्यादि गम्भीर बीमारियों के माध्यम से मृत्यु का वरण किये।

मृत्यु को कोई बहाना चाहिए होता है शरीर रूपी वस्त्र को नष्ट करके आत्मा को मुक्त करने के लिए।

यह सभी पूजनीय हैं, इन्होंने जो श्रेष्ठ जीवन जिया और श्रेष्ठ कर्म किया उसके लिए इन्हें पूजा जाता है। मृत्यु कैसे और किस कारण से हुई इसकी परवाह इन्होंने नहीं की और आप भी मत कीजिये।

मौत अटल सत्य है, आध्यात्मिक हो या संसारी दोनों को आएगी। संसारी अपने प्रारब्ध भुगतते हैं और आध्यात्मिक महापुरुष दूसरों के प्रारब्ध भुगतते हैं। लोन यदि दुसरो का चुकाओगे तो अपना पैसा तो देना पड़ेगा। इसी तरह दूसरों को आशीर्वाद देकर दुःख दूर करोगे तो स्वयं का तप तो ख़र्चना पड़ेगा। कुछ अंश तकलीफ़ को झेलना पड़ेगा। कभी कभी महापुरुष सन्तों के अत्यंत प्रिय शिष्यों को भी गम्भीर बीमारियों को झेलना पड़ता है क्योंकि वो गुरु की पीड़ा बंटाने में मदद करते है। गुरु सबकी पीड़ा हरते है और ऐसे शिष्य गुरु की पीड़ा हरते हैं।

अतः महापुरुषों के जीवन का अंत कैसे हुआ इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता, वो जब तक जिये रौशन रहे और दूसरों के जीवन के अंधेरे को मिटाते रहे इस बात से फ़र्क़ पड़ता है। आत्मा ने जिस शरीर रूपी वस्त्र को पहना उसका सदुपयोग किया। अब यह फट गया इसका समय पूरा हुआ, इसे छोड़ दिया अब नए सफ़र को नए शरीर रूपी वस्त्र के साथ करने के लिए चली गयी।

जीवन के रंगमंच पर आपके कार्य को हमेशा याद किया जाता है। चाहे रोल छोटा हो या बड़ा, वो प्रकाशित करने वाला प्रभावी होना चाहिए। लम्बी उम्र के साथ निकृष्ट कार्य और निकृष्ट जीवन से उत्तम है कम उम्र के साथ श्रेष्ठ कार्य और श्रेष्ठ जीवन।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

महापुरुषों का प्रारब्ध = साधना से अर्जित शक्ति +निष्काम कर्म – दूसरे के कष्टों को दूर करने में खर्च की साधना की जमा पूंजी।

*उदाहरण के लिए ठाकुर रामकृष्ण परमहंस का गले में कैंसर

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