प्रश्न – पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद को क्यों प्रश्रय देता है?वो अपने देश के विकास पर क्यों ध्यान नहीं देता?

उत्तर – भारत से अलग होने का निर्णय वास्तव में जिन्ना का नहीं था, वो तो मात्र कठपुतली था उस वक़्त के मुस्लिम नवाबों का जो देश के आज़ाद होने के बाद स्वयं के हाथ से सत्ता और पद जाने के भय से आतंकित थे। वे जानते थे जो जनता अंग्रेजों को उखाड़ फेंकी अब उस पर अत्याचार करना और गुलाम बनाना संभव न होगा। अतः उन्हें ऐसे चेहरे की तलाश थी जिसे खड़ा करके वो अपना स्वार्थ साध सकें। पाकिस्तान वास्तव में सबसे बड़ा ज़मीन धोखाधड़ी(land laundry) का मामला था। 5% से 7% अमीर नवाबों और सूबेदार ने अलग पाकिस्तान की मांग किया। 95% ग़रीब मुस्लिम परिवार से तो पूँछा भी नहीं कि उन्हें अलग मुल्क चाहिए भी या नहीं, उसने मुस्लिमों को धर्म के नाम पर भड़काया। ख़ैर आगे सब जानते हैं देश बंट गया। पाकिस्तान एक दिन पहले आज़ाद हुआ।

*लेकिन उस वक्त के वो मुस्लिम जो इस गन्दी नियत को समझ गए थे उन्होंने जिन्ना और पाकिस्तान दोनों को मानने से इनकार कर दिया और भारत में ही रहने का फैसला किया।

*भारत विकास पथ पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, पारसी इत्यादि अनेकों जातियों को लेकर विकास पथ पर बढ़ निकला। इसकी तरक्क़ी और समृद्धि देखकर पाकिस्तान को बहुत बुरा लगा। वो स्वयं की ख़स्ता आर्थिक कंगाली से पाकिस्तान की जनता का ध्यान भटकाने के लिए पुनः मुस्लिम धर्म भावना, जिहाद और अन्य माध्यम से कश्मीर का मुद्दा जीवित रखा। कोई न कोई धमाके करके पाकिस्तानियों के अंदर भारत के विरुद्ध जहर भरा।

कर्जों के घनचक्कर में पाकिस्तान

रोजनामा ‘एक्सप्रेस’ के संपादकीय का शीर्षक है :- पाकिस्तान पर विदेशी कर्जों का बढ़ता हुआ बोझ. अखबार ने पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान की रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा है कि सितंबर तक कर्ज 85 अरब डॉलर तक पहुंच गया और एक साल में इसकी वृद्धि दर 12.3 फीसदी रही.

अखबार लिखता है कि एक डॉलर 110.54 पाकिस्तानी रूपए के बराबर है और जानकार इसमें और गिरावट की आशंका देख रहे हैं. स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान का कहना है कि जुलाई से सितंबर तक की तिमाही में दो अरब दस करोड़ डॉलर विदेशी कर्जों की अदायगी में खर्च किए गए. अखबार की राय में, ये आंकड़े बताते हैं कि ‘हमारे आर्थिक मैनेजरों की नीतियां दुरुस्त नहीं थी और अगर देश पर कर्जों का भार यूं ही बढ़ता रहा तो देश की अर्थव्यवस्था को संभालना मुश्किल होता जाएगा.’

पाकिस्तान की खस्ता आर्थिक हालत के लिए सरकार और हुकमरानों को जिम्मेदार करते हुए अखबार लिखता है कि मौजूदा कानून के तहत कर्जे देश की जीडीपी के 60 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होने चाहिए लेकिन इस वक्त कर्जे जीडीपी के 65 प्रतिशत तक जा पहुंचे हैं.

अखबार लिखता है कि सरकारों ने इतना कर्ज लिया है कि इस वक्त हर पाकिस्तानी एक लाख रुपए के कर्ज में दबा है और देश कर्जों के घनचक्कर में फंसता जा रहा है. अखबार के मुताबिक पाकिस्तान पर घरेलू कर्जों का बोझ 16,200 अरब रुपए है तो विदेशी कर्जों का बोझ 9000 अरब रुपए.

इसी विषय पर रोजनामा ‘आज’ लिखता है कि पाकिस्तान का व्यापारिक घाटा बढ़ कर 15 अरब डॉलर तक जा पहुंचा और न तो बेगलाम आयात को रोका जा सका है और न ही खुले आम हो रही तस्करी पर कोई रोक लगाई जा सकी है.

अखबार कहता है कि डॉलर के मूल्य में इजाफे की वजह से जब महंगाई का सैलाब आएगा तो सरकार से पास उसे काबू करने का कोई तरीका नहीं होगा. अखबार कहता है कि इन हालात में अर्थव्यवस्था पर जो नकारात्मक असर पड़ रहा है उस पर नीति निर्माताओं को ध्यान देने की जरूरत है.

पाकिस्तान में 40% कम पीने का पानी है, क्योंकि कई नदियों में बांध बन ही न सका।

प्रत्येक पाकिस्तान पर आज की डेट में एक लाख रुपये का विदेशी  कर्जा है।

भारत हर मामले में पाकिस्तान से दुगुने से ज्यादा पावरफुल है।

1- भारत के एक रुपये पाकिस्तान के दो रुपये बराबर है। अर्थात अठन्नी की औकात है।

2- भारत के पास युद्ध हथियार, सेना, जल-थल-वायु में दुगुने हैं।

3- भारत विश्व में एक शक्ति के रूप में उभर रहा है।

4- भारत विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 417 अरब डॉलर का है, पाकिस्तान के पास 17 अरब डॉलर भी नहीं है।

5- भारतिय सेना विश्व की सबसे ताकतवर, देशभक्त और कुशाग्र बुद्धि सेना है।

6- पाकिस्तान में अशिक्षा 50% से ज्यादा है।

7- विकासदर कुछ है ही नहीं।

पाकिस्तान उपरोक्त बातों को जानता है, इसलिए वो कभी सामने से नहीं लड़ता। तीन दिन से ज्यादा युद्ध लड़ने की आर्थिक योग्यता न होने के कारण वो पाकिस्तान की सेना के हाथों की कठपुतली बना हुआ है। आतंकी वास्तव में पाकिस्तानी सैनिक ही हैं, जो उनके लिए कार्य करते हैं। यह आतंक पूरा का पूरा बिज़नेस है। अपनी देश न चला पाने की नाकामी को वो इस तरह आतंकवाद के नाम पर छुपाने का प्रयास करते हैं।

भारत मे पहले कोई हिम्मती नेता नहीं था, जो आतंकवाद का ऑपरेशन करने के लिए सेना को छूट दे सके और अंतरराष्ट्रीय दबाव को सम्हाल सके। समस्या पहले भी थी, हम रोते और मोमबत्तियाँ जलाते थे। आज के समय में फ़र्क़ इतना है कि इस बार उपचार हो रहा है, अब हम विजय के घी के दीप जला रहे हैं। भारतीय सेना को फ्री हैंड मिल गया, इसलिए देश के बाहर जाकर भी आतंकवाद का उपचार(सर्जिकल स्ट्राइक/एयरस्ट्राइक) हो रहा हैं। हम सब भारतीयों को अपने देश की सेना और प्रधानमंत्री के साथ सपोर्ट में खड़ा रहना चाहिए।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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