प्रश्न – दी, विवाह को आजकल के युवा मात्र रिलेशनशिप को लीगल करवाना समझते हैं, इससे ज़्यादा कुछ नहीं। लिव इन रिलेशनशिप और वेश्यागमन में कोई बुराई नहीं समझते। इस पर क्या गुरूदेव ने प्रकाश डाला है।

उत्तर – आत्मीय बेटे, आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से विवाह जितना जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी वैज्ञानिक दृष्टि है।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने विवाह के महत्त्व का वर्णन अनेक पुस्तको में किया है, गृहस्थ एक तपोवन वांगमय भी लिखा है। क्योंकि तुम कॉलेज में पढ़ने वाले युवा हो इसलिए तुम्हें विज्ञान पक्ष ज्यादा समझाऊंगी।

बेटे, प्रत्येक मनुष्य के पास तीन शरीर होते है जिसे स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर कहते हैं। विवाह में इन तीनों का मेल होना आवश्यक है। बिना तीनो के मेल के ऊर्जा चक्र पूर्ण नहीं बनता।

*युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव* अपनी पुस्तक – *मानवीय विद्युत के चमत्कार* में लिखते है कि *लिव इन रिलेशनशिप और वेश्यागमन या गिगलोगमन ऐसा है मानो दावत में सैकड़ों आदमियों या औरतों की बची-खुची, थूक-लार लगी हुई गन्दी जूठन चाटना।* इससे स्थूल शरीर को जितनी ज्यादा क्षति होती है उससे ज्यादा कई गुना क्षति मानसिक सूक्ष्म ऊर्जा शरीर को होती है। एक स्त्री वेश्या(कॉल गर्ल) या एक पुरुष वेश्या(गिगलो) कई निम्न चरित्र लोगों की पाप ऊर्जा को स्वयं में संग्रहित करते हैं, इस कारण इनका वैचारिक प्रदूषण और विषैला ऊर्जा का वायुमंडल होता है। असंख्य लोगों की दुर्वासनाएँ लिए होती हैं। इनसे शारीरिक सम्बंध बनाने पर शरीर का ओजस-तेजस नष्ट हो जाता है। इनके वायुमंडल में फंसा व्यक्ति उस ख़ालीपन को नशे से भरने की कोशिश करता है। यह जन्म भी खराब करता है और कई जन्मों तक पाप भुगतता है। इससे उतपन्न हुई सन्तान समाज मे नाजायज़ कहलाती हैं। बिना भावनात्मक प्रेम से उतपन्न हुई सन्तान सम्वेदना शून्य और अच्छे सँस्कार से विहीन होती है, जो बदले की भावना से प्रेरित होकर समाज मे तबाही लाती है।

ऋषि और आधुनिक विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि संतानोत्पत्ति के लिए उत्तम आयु 20 वर्ष से 30 वर्ष के बीच होती है। 30 वर्ष के बाद शरीर ऊर्जा घटती है, इसके बाद स्त्रियों और पुरुषों के हार्मोनल परिवर्तन के कारण बच्चे किसी न किसी कमी को लेकर जन्म लेते हैं। इसलिए विवाह सम आयु में किशोरावस्था के अंतिम और युवावस्था के प्रारम्भ में करने की सलाह दी जाती है।

स्त्री और पुरुषों में अलग अलग प्रकार की विद्युत धाराओं का विशेष प्रवाह होता है। जिस प्रकार  बैटरी में निगेटिव और पॉजिटिव दो धाराएं जब मिलती हैं तब टॉर्च या बल्ब जलता है। इसी तरह भगवान ने सृष्टि के सृजन हेतु निगेटिव आकर्षण स्त्री के शरीर मे और पॉजिटिव विकर्षण पुरुष के शरीर में दिया।

विवाह द्वारा इन दोनों शक्तियों को एक साथ मिलाया जाता है। जिससे स्त्री पुरुष स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर से जुड़कर अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास करते हैं। भावनात्मक और आध्यात्मिक मिलन मन्त्रशक्ति से होता है जिससे इनके ऊर्जा शरीर का भी विकास होता है। जब इन्हें पूर्णता मिलती है तो यह अधिक स्वस्थ प्रशन्न उमंग और उल्लास से भर उठते हैं। ओजस और तेजस में भी वृद्धि होती है। नवविवाहित जोड़े के चेहरे पर दमक सहज ही देखी जा सकती है। जिस घर में प्रेम सहकार युक्त गृहस्थी हो तो वह घर धरती का स्वर्ग होता है। ऐसे दम्पत्ति जब सन्तान धरती पर लाते है तो सन्तान उच्च गुणवत्ता की होती है।

विधुर या विधवा या अविवाहित अक्सर गृहस्थों की अपेक्षा ज्यादा मानसिक रूप से बीमार पाए जाते हैं। जिसके कारण उनका शरीर भी रोगग्रस्त हो जाता है। आप अपने घर के आसपास के वातारण में देख सकते हो।

पिता के नाम से ही सन्तान के गोत्र का निर्धारण इसलिए होता है क्योंकि स्त्री के गुणसूत्र XX होते हैं, जिसमें एक X पिता और एक X माता का होता है।वंश की अलग पहचान पुरूष के XY के आधार पर हो सकती है। क्योंकि इसमें से Y गुणसूत्र पिता से और X माता से मिलता है। Y की यूनिक संरचना पीढ़ियों को पहचानने में काम करती है। तो यदि गोत्र भरद्वाज है तो Y गुणसूत्र भरद्वाज ऋषि का ही उनकी वंश परम्परा में यूनिक होगा।

धर्म में स्त्री के व्रत तप के ज्यादा करने के पीछे विज्ञान यह था कि स्त्री के 23 गुणसूत्र प्रकट और एक और गुणसूत्र अप्रकट होता है। जिससे स्त्री धर्म क्षेत्र में पुरुष से कई गुना अधिक स्पीड से आध्यात्मिक शक्ति अर्जित कर सकती है।

जिस प्रकार दो तालाब के बीच नाली बना दी जाए तो अधिक भरे तालाब से पानी कम वाले तालाब में जाकर दोनों बराबर हो जाते हैं। इसी तरह स्त्री और पुरुष में जो भी ज्यादा आध्यात्मिक शक्ति से सम्पन्न हो, वो अपने भावनात्मक रूप से जुड़े समर्पित अर्धांगिनी या अर्धांग को अपनी आध्यात्मिक उर्जा स्वतः ट्रांसफर कर देता है। *उदाहरण* – ठाकुर रामकृष्ण और मां शारदा, अरविंद घोष और श्री माँ, परमपूज्य गुरुदेव और माता वन्दनीया।

एक या दो वर्ष छोटे बड़े या समान आयु के स्त्री पुरुष समवय कहलाते हैं। ऐसे विवाह सफल होते है और इनकी मानवीय ऊर्जा सन्तुलित होती है।

अधिक आयु वाले की मानवीय विद्युत शोषक शक्ति कम आयु के जीवन साथी की ऊर्जा खींच लेता है। अतः इस कारण कम आयु का जीवनसाथी अक्सर बीमार और निश्तेज पाया जाता है। जैसे बड़े और छोटे पौधे पास पास हों तो बड़ा पौधा मिट्टी का पोषक तत्व ज्यादा खींचता है।

प्राचीन समय में पुरुष यह बात जानते थे, इसलिए राजा-महाराजा और धनाढ्य जानबूझकर एक से अधिक शादियां और वो भी कम उम्र की स्त्रियों से शादी करते थे, वो विवाह के पश्चात ऊर्जावान होते जाते थे और स्त्रियां बीमार और निश्तेज। अतः फ़िर स्त्रियों को अतिरिक्त ऊर्जा देने हेतु स्वर्ण, चांदी और मणियों की मदद ली जाती थी। आभूषण के रूप में उन्हें पहना दिया जाता था।

एक बात और मात्र कोर्ट मैरिज भी लाभप्रद नहीं है। इससे रिलेशनशिप लीगल तो हो जाती है, लेकिन वो भावनाएं और ऊर्जा शरीर मे कनेक्शन वैसा नहीं बनता जैसा वैदिक मंत्रों और यज्ञ अग्नि के समक्ष बनता है। यज्ञ ऊर्जा मंन्त्र और संकल्पों को मष्तिष्क के सूक्ष्म कोषों और तीनों शरीर के रोम रोम तक पहुंचा देता है। वैदिक विधि विधान से किया विवाह पूर्णता लाता है। अतः युवा पीढ़ी को वैदिक मंत्रों के साथ यज्ञ करते हुए वैदिक विधि से ही विवाह करना चाहिए।

प्रेम हमेशा जिम्मेदार होता है, अतः सच्चे प्रेमी विवाह बंधन में बंधकर एक होना चाहते हैं।

व्यभिचारी प्रेम एक के साथ बंधना नहीं चाहता, बल्कि मात्र टाइम पास करना चाहता है।

लिव इन रिलेशनशिप वाले लोगों की कभी भी घर गृहस्थी नहीं बसती, नाजायज़ औलादों का या तो अबॉर्शन होता है, जिसमें शरीर तो बच्चे का मरता है और आत्मा भटकती है, पाप भी लगता है। यदि ऐसे बच्चे जन्मते है तो वो अनाथों की तरह अनाथालय में पलते हैं। अगर स्त्री ने हिम्मत करके उस बच्चे को पाल भी लिया तो वो बच्चा बिना पिता के नाम के  कदम कदम पर नाज़ायज होने का अपमान का दंश झेलते हुए पलता और बढ़ता है। पाश्चात्य देश की सरकारें ऐसे नाज़ायज और अनाथ बच्चों की बाढ़ से त्रस्त और परेशान हैं।

अतः लिव इन रिलेशनशिप वाले कपल को गर्भ का ऑपरेशन करवा के बिना जिम्मेदारी के रिलेशनशिप में जाना चाहिए।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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