प्रश्न – दी, मेरी उम्र 21 वर्ष है, मेरी पढ़ाई चल रही है। पिछले चार महीनों से विभिन्न स्वास्थ्य कारणों से परेशान हूँ। कईं सारे डॉक्टर को दिखाया मगर आराम नहीं हुआ। अब बहुत डिप्रेशन में हूँ

उत्तर – आत्मीय भाई,

कुछ महापुरुषों के स्वास्थ्य के सत्य से तुम्हे अवगत करवाना चाहती हूँ, इसे पूरा ध्यान से पढो:-

*महर्षि रमण* ने अपने आपको शरीर तक ही सीमित नहीं मानने, उससे तादात्म्य पूरी तरह तोड़ लेने और कायाक्लेश से रत्तीभर प्रभावित न होने पर भी उन्होंने दूसरों का कष्ट दूर करने के लिए जोखिम उठाई। कर्मफल को ब्रह्म की तरह सत्य और अटल मानते हुए भी *महर्षि रमण कहते थे कि दूसरों के कष्ट अपने ऊपर लिए जा सकते हैं। आशीर्वाद वरदान देने से ही काम नहीं चलता। जो आशीर्वाद दे रहा है, उसे अपने पुण्य का एक अंश भी पीड़ित व्यक्ति को देना होता है। न्यायालय ने किसी अपराध के लिए अर्थदंड दिया है, तो जुर्माना भरना ही पड़ेगा। दंडित व्यक्ति जुर्माना दे अथवा अनुरूप, सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी। कष्टमुक्ति के लिए पुण्य तो चुकाना ही पड़ेगा। इस नियम का निर्वाह करते हुए उन्होंने कितने ही भक्तों के कष्ट अपने ऊपर लिए और उन्हें पीड़ामुक्त किया।*

लोगों को कष्टमुक्त करते रहने के कारण महर्षि रतण पर कल्मषों का बोझ इतना बढ़ गया कि उसका विग्रह करने के लिए प्रकृति ने *उनकी बायीं भुजा में कैंसर रोप दिया। इससे पहले वे गठिया और शरीरक्षय जैसे रोगों-विकृतियों को आमंत्रित कर चुके थे।* उनके जीवनीकार आर्थर आँसबोर्न ने लिखा है कि वे रोगी थे। बहुत दुर्बल दिखाई देते थे, लेकिन उन्हें इसकी चिंता नहीं थी।

धर्म-अध्यात्म के इतिहास में इस तरह के अनेक उदाहरण मिलते हैं। *भगवान बुद्ध की मृत्यु विषूचिका रोग के कारण हुई, भगवान शंकराचार्य अंत तक भगंदर रोग से पीड़ित रहे। इसी युग में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु भी इसी वजह से कैंसर रोग के कारण हुई। स्वामी विवेकानंद 31 गम्भीर बीमारी से ग्रस्त थे।*

महर्षि रमण ने अपनी पहली आध्यात्मिक अनुभूति के बारे में कहा है कि वह मृत्यु के भय के रूप में थी। इस भय पर विजय पा लेने के बाद कोई कारण नहीं बचा, जिसने उन्हें विचलित(डिप्रेशन-तनाव) किया हो। महापुरुष न मृत्यु से विचलित होते है न रोग से…

 अच्छा ये बताओ जब यह महापुरुष इतनी बड़ी बीमारियों के साथ इतने बड़े बड़े कार्य कर सकते है, धर्म विजय अभियान को चला सकते हैं, आनन्द में रह सकते हैं, तो फ़िर तुम मात्र 4 महीने की बीमारी से भयभीत क्यों हो। डिप्रेशन में क्यों हो?

यह तो ऋषि थे तुम कहोगे, तो पर्वतारोही अरुणिमा जो एक नकली पैर से पर्वत चढ़ गई, और पाकिस्तानी एंकर मुनिबा मज़ारी जिसका कमर से नीचे का हिस्सा पैरालाइज है। जब यह हिम्मत से जीवन जी सकते है, तो तुम भला कैसे हार मान सकते हो?

जो कर सकते हो इलाज के उपाय करो, लेकिन शरीर के रोग के कारण मन को रोगी बनाना कहाँ की अक्लमंदी है?

पढ़ाई मन को करनी है, अतः मन डिस्टर्ब होगा तो पढ़ाई कैसे होगी? मन डिस्टर्ब होगा तो पाचन 100% डिस्टर्ब होगा। अतः मेरे भाई संघर्ष ही जीवन है, अतः मनोबल बढ़ाओ और अग्निपरीक्षा पास करते चले जाओ।

*आध्यात्मिक उपाय* – नौ दिन की छुट्टी लेकर युगतीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार चले जाओ। 9 दिन की संजीवनी साधना वहां करो। वहां चिकित्सालय में डॉक्टरों से परामर्श लो। सुबह प्रणाम की लाइन में लग के जीजी और डॉक्टर साहब से अपनी परेशानी बता देना। विभूति(यज्ञ भष्म) मिलेगी वो सम्हाल के रख लेना। 9 दिन तक सुबह शाम दोपहर 3 बार एक चुटकी यज्ञ भष्म मिलाकर गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल पीना। भावना करना यह जल गौमुख की गंगा का है जो मेरे शरीर को रोगमुक्त करेगी। वहां तुलसी का वृक्ष होगा, उससे रोज शाम को प्रणाम करके, बाते करके अपनी व्यथा बताना और रोज सुबह केवल तीन पत्ती तोड़कर खा लेना। 9 दिन तक जो भी आश्रम में माता भगवती भोजनालय में भोजन मिले वही खाना। कुछ भी बाहर से खरीद के मत खाना। समाधि पर अपनी समस्त व्यथा लिख के कागज में चढ़ा देना। समाधि, सप्तर्षि, गायत्री मन्दिर, अखण्डदीप सर्वत्र उत्तम स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करना।

9 दिन संजीवनी साधना के लिए शान्तिकुंज ऑनलाइन साइट से अनुमति लेना अनिवार्य है।

वहाँ 5 वरिष्ठ गायत्री साधको से अपनी व्यथा डिसकस करना। वहां लाइब्रेरी में कुछ पुस्तके नित्य पढ़ लेना – *निराशा को पास न फटकने दें* , *विचारों की सृजनात्मक शक्ति* , *स्वस्थ रहने के सरल उपाय* इत्यादि।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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