प्रश्न – दीदी, इक्षानुरुप नहीं होने पर मन दुःखी क्यों होता है?* क्या अपेक्षाएं रखना गलत है?

उत्तर – आत्मीय भाई, यह संसार जिन एटम से बना है उसी एटम से प्रत्येक मनुष्य और तुम भी बने हो। सब जुड़कर भी सबकी अपनी अपनी स्वतन्त्र सत्ता है।

तत्व दृष्टि से यदि जीव, वनस्पति, पशु, पक्षी और मनुष्य को देखोगे तो सबमें वह एटम है, उस एटम(परमाणु/कण) में एक ऊर्जा है औऱ वो ऊर्जा ही परमात्मा है। जिससे यह जगत चलायमान है।

इच्छा यदि विवेकपूर्वक किया जाय तो कभी दुःखी न होगा इंसान। यदि जो जैसा उसे वैसा स्वीकार कर लो।

एक खिलाड़ी की तरह स्वयं की योग्यता और काबिलियत पर भरोसा रखते हुए जीवन जियो। क्रिकेट के मैदान में यदि बैट्समैन बॉलर्स से उम्मीद करेगा कि वो अच्छी बॉल फेंके तो हमेशा दुःखी होगा। लेकिन यदि बैट्समैन केवल स्वयं से उम्मीद करे कि ख़ुद बेहतर खेलना है, तो कभी निराश नहीं होगा।

अपेक्षाएं स्वयं से रखना सही है, अपेक्षाएं दूसरे से रखना सर्वथा ग़लत है। अब वह दूसरा तुम्हारा प्रिय स्वजन जीवनसाथी, मित्र रिश्तेदार ही क्यों न हो… तुम अपेक्षाएं न रख के ऐसे सोचो कि यदि यह मेरी इच्छानुसार कार्य करता है तब मेरा अगला कदम यह होगा, यदि मेरी इच्छानुसार कार्य नहीं करता तब मेरा कदम यह होगा। उस व्यक्ति की स्वतन्त्र आत्मसत्ता का सम्मान करो, उसके किसी भी क्रिया पर तुम क्या प्रतिक्रिया करोगे यह तैयार रखो।

मोह सकल व्याधिन कर मूला- मोहबन्धन में मत बन्धो। सुख से मोह करोगे तो दुःख में पड़ोगे। दुःख का दूसरा नाम इच्छा है। सुख-दुःख दिन और रात की तरह अनवरत आते जाएंगे, तुम अपने जीवन की प्रोग्रामिंग जैसे दिन में क्या करोगे और रात में क्या करोगे के लिए करते हो, ठीक वैसे ही प्रोग्रामिंग सुख में क्या करोगे और दुःख में क्या करोगे के लिए कर लो।

यह शरीर भी तुम्हारा हमेशा नहीं रहेगा, यह शरीर सराय है, यह परिवर्तनशील है, इसके रोगी या बूढ़े होने के कई कारण तुम कंट्रोल नही कर सकते हो। तो इस शरीर का ही मोह/अपेक्षा नहीं करना है। इस शरीर मे बीमारी हो तो इलाज करना है और यह शरीर स्वस्थ है तो इसके स्वास्थ्य को मेंटेन करना है।

इसी तरह इस शरीर से जुड़े रिश्ते बीमार है तो उन रिश्तों का इलाज़ करो। बातचीत करके हल करने की कशिश करो। यदि रिश्ते स्वस्थ हैं तो उसे मेंटेन करो।

उलझो कहीं मत, तत्वदृष्टि से संसार में सबको देखो।यहां न कोई अपना है और न कोई पराया।जिंदगी के रंगमंच पर सब अपना रोल कर रहे हैं, तुम केवल अपने रोल को जानदार शानदार करने में जुट जाओ। रोल खत्म पर्दा गिर जाएगा और गेटअप से व्यक्ति मुक्त हो जाएगा। वह नाटक/फ़िल्म ख़त्म, नए जन्म में दूसरी शुरू…यह क्रम चलता रहेगा।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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