प्रश्न – क्या सविता(सूर्य) इंसानों की तरह भावनाएं अभिव्यक्त करता हैं और महसूस करता है?

उत्तर – आत्मीय भाई, प्रश्न का उत्तर समझने से पूर्व आइये *सूर्य की सविता शक्ति का विवेचन समझते हैं।*

दृश्यमान सूर्य को ऊर्जा देने वाली शक्ति को सविता कहते हैं, सूर्य का बाह्य स्वरूप शरीर मानो और सूर्य की आत्मा सविता जानो और सूर्यकी शक्ति को सावित्री जानो। सविता और सावित्री का युग्म है। रथ के दो पहियों की तरह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। सावित्री को गायत्री भी कहते हैं। सविता को आदित्य या भर्ग भी। दोनों की संयुक्त शक्ति का आविर्भाव जब होता है, तो उस समन्वय को उपलब्ध करके साधक धन्य बन जाता है। सविता की सर्वोपरि यहाँ तक की ब्रह्म कहा गया है।

*आदित्या-ज्योतिर्जायते। आदित्याद्देवा जायन्ते। आदित्या द्वेदा जायन्ते। असवा दित्यो ब्रह्म।* -सूर्यापनिषद

अर्थात् “आदित्य से प्रकाश उत्पन्न होता है। आदित्य से देवता उत्पन्न हुए हैं। आदित्य से वेद उत्पन्न हुए, यह सूर्य ही प्रत्यक्ष ब्रह्म है।

आगे शास्त्र इसी कथन की पुष्टि करते है।

*एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कंद प्रजापतिः। महेन्द्रो धनदः काले यमः सोमो ह्यषाँ पतिः* -बाल्मिकी. रामा.

अर्थात्- ‘‘यह सूर्य ही ब्रह्मा है। विष्णु है। शिव है। स्कंद है। प्रजापति है। इन्द्र है। कुबेर है। काल है। यम है। सोम है और इन सबका स्वामी भी है।

*संद्यानो देवः सविता साविशद् अमृतानि* -अथर्ववेद

अर्थात्-”वह सविता देव अमृत तत्वों से भरा पूरा है।”

मनुष्य उस परब्रह्म का अंश है, सूर्य भी परब्रह्म का ही स्वरूप है। समुद्र की बूंद में समुद्र के समस्त गुण धर्म होते है। इसी तरह यदि समुद्र की बूंद नमकीन है तो हम जान जाते है कि पूरा समुद्र खारा है। इसी तरह परब्रह्म की बूंद मनुष्य में भावनाएं है तो हम मान लेते है कि परब्रह्म में भी उसका अंश है।

मनुष्य का शरीर को दर्द या आराम तो अनुभव कर सकता है, लेकिन सुख, दुःख, क्रोध, आनंद इत्यादि भावनाएं जो शरीरगत नहीं है वो अनुभव नहीं कर सकता और शरीर से समझा भी नहीं जा सकता। भावनाएं मन से विनिर्मित होती है, अदृश्य भावनाओं को किसी लैब में जांचा परखा नहीं जा सकता लेकिन एक चेतन मनुष्य की भावना उससे जुड़ा दूसरा चेतन मनुष्य महसूस कर सकता है। सूर्य के बाह्य शरीर से उसके सविता द्वारा अभिव्यक्त भावों को देखा-समझा नहीं जा सकता।

वास्तव में सूर्य की सविता शक्ति द्वारा अभिव्यक्त भावनाओ को महसूस करने के लिए उससे चेतना के स्तर पर जुड़ना होगा, जिसे योग कहते है। जब यह कनेक्शन बन जायेगा तब परब्रह्म सविता शक्ति और प्रकृति  की प्यार, क्रोध, नाराज़गी, ख़ुशी इत्यादि भावनाएं महसूस होने लगेगी। प्रत्येक कण कण की भावनाओं महसूस करने की क्षमता निर्मल और श्रद्धापूरित हृदय द्वारा संभव है।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Reference :-http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1987/May/v2.44

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *