प्रश्न – क्या धर्म के अनुसार समलैंगिक (homosexual) रिलेशनशिप वर्जनीय है और पाप है?

प्रश्न – क्या धर्म के अनुसार समलैंगिक (homosexual) रिलेशनशिप वर्जनीय है और पाप है? क्षमा करें कि यह प्रश्न आपसे पूंछना पड़ रहा है क्योंकि कॉलेज में ऐसी बाते होती है तो मन प्रश्न से भर उठता है, मम्मी पापा से पूंछ नहीं सकते। अतः आप से पूंछ लिया, यह पश्न बहुतों के मन मे है।

उत्तर – आत्मीय बेटे, भगवान ने संसार में स्त्री पुरुष को समस्त अन्य जीवों की तरह प्रजनन अंग (reproduction organ) दिए हैं। जिसकी सहायता से वंश वृद्धि की जा सके। हमारा और आप का जन्म भी इसी सृष्टि के दिये वरदान के कारण हुआ है।

पशु-पक्षी, जीव-वनस्पति की संतानें सोचने समझने की क्षमता लेकर पैदा नहीं होती और उनके दिमाग़ का सॉफ्टवेयर पहले से लिमिटेड और ऑटो प्रोग्रामिंग में होता है। बच्चे जन्म के तुरन्त बाद या कुछ महीनों में आत्मनिर्भर बन जाते हैं। उसके बाद उनकी माता पिता पर निर्भरता समाप्त हो जाती है। लेक़िन मनुष्य के बच्चों के दिमाग़ का सॉफ्टवेयर कॉम्प्लेक्स होता है और सोचने समझने की शक्ति से भरपूर होता है। गर्भ से ही माता पिता और समाज के हाथों से उसकी प्रोग्रामिंग शुरु हो जाती है। जिस भाषा के माता पिता होते है वो सीख लेता है। बहुत ज्यादा वक्त लग जाता है एक बच्चे को आत्मनिर्भर बनने में और पूर्ण विकसित होने में, लेक़िन जब वह पूर्ण बन जाता है तो समस्त जीव वनस्पति पशु पक्षी से भी ज्यादा होशियार बन जाता है।

ऋषि गण यह जानते थे, अतः बच्चे के दिमाग़ की प्रोग्रामिंग सही  ढंग से उचित हो इसलिए विवाह और परिवार व्यवस्था बनाया। धर्म के नाम पर do & don’t की लिस्ट बनाकर व्यक्तित्व निर्माण से परिवार निर्माण और समाज निर्माण की विधिव्यवस्था गढ़ दी।

समलैंगिक (homosexual) रिलेशनशिप एक मानसिक रोग है। जिसका सन्तान के प्रजनन (reproduction) से कोई लेना देना नहीं है। यह काल्पनिक दुनियाँ में काल्पनिक सुख को काल्पनिक तरीक़े से प्राप्त करने के लिए आर्टिफिशियल तरीक़े से क्षणिक ख़ुशी पाने विधिव्यवस्था है, जो एक प्रकार के मनोरोगियों में ही देखी जाती है।

प्रकृति, पशु, पक्षी, जीव, वनस्पति और मानसिक रूप से स्वस्थ स्त्री पुरुषों में यह विकृति नहीं देखी जाती। भगवान की सृष्टि में स्त्री के अंदर निगेटिव आकर्षण और पुरुष के अंदर पॉजिटिव विकर्षण की मानवीय विद्युत ऊर्जा प्रवाहित की है। जो वंश वृद्धि के साथ साथ भावनात्मक रूप से एक दूसरे के जीवन में सहयोगी बनकर पूर्णता  को प्राप्त होते हैं। सृष्टि के संचालन में भगवान के सहयोगी की भूमिका निभाते हैं।

ब्रेन वाश एक प्रकार से स्वस्थ दिमाग़ की हैकिंग है, जो मनुष्य को आतंकी भी बना सकती है और समलैंगिक भी बना सकती है। गर्भिणी माता या गर्भस्थ शिशु का पिता या बच्चा किसी भी परिस्थिति वश या किन्ही कारण से स्त्री या पुरुष से नफ़रत करता है या विकृत चिंतन करता है तो बच्चे के दिमाग़ के कॉप्लेक्स प्रोग्रामिंग डिस्टर्ब हो जाती है और वह प्रकृति विरुद्ध आचरण करने लगता है। इसे कोई भी मनोवैज्ञानिक चिकित्सक या आध्यात्मिक चिकित्सक से लगातार काउंसलिंग और स्वयं ध्यान करके आध्यात्मिक शल्य चिकित्सा द्वारा ठीक किया जा सकता है।

प्रत्येक व्यक्ति के अंदर स्त्रीत्व और पुरुषत्व दोनों के गुण होते हैं, जिसमें जो ज्यादा होता है उसके अनुसार रूप और शरीर बन जाता है। गहन ध्यान साधना और भाव सम्प्रेषण से कोई भी व्यक्ति कुछ भी मानसिक स्तर पर बन सकता है।

सुप्रीम कोर्ट या सरकार किसी के व्यक्तिगत निर्णय और वह क्या खायेगा और किन माध्यमों से स्वयं को मनोरंजन(Entertain) करेगा में हस्तक्षेप नहीं करता। कानून कोई बड़ी दुर्घटना घटने के बाद ही काम करता है। अतः आप बेतहाशा खा कर रोगी बनो या असंयमित दिनचर्या अपनाकर रोगी बनकर मरो या अस्वस्थ रिलेशनशिप में झगड़ो या समलैंगिक (homosexual) रिलेशनशिप करके रोगी बनो उसे कोई मतलब नहीं है। आप अपनी गाड़ी पेड़ में ठोंक दो या स्वयं को नुकसान पहुंचाओ, इससे कानून को कोई लेना देना नहीं। कानून तब कार्यवाही करेगा जब गाड़ी से आप दूसरे मनुष्य को नुकसान पहुंचाओगे। पशु पक्षी जीव वनस्पति में भी जीवन है यह कानून की नज़र में मायने नहीं रखता।

लेकिन धर्म क्योंकि आपका, परिवार का, समाज का और सृष्टि का भला चाहता है, इसलिए प्रकृति अनुसार आचरण करने को कहता है, संयमित जीवन और अल्पाहार को बढ़ावा देता है, अप्राकृतिक रिलेशनशिप को न बनाने हेतु प्रेरित करता है।  जीव वनस्पति और पशु पक्षी में जीवन है, यह धर्म मानता है, इनको बेवजह नुकसान पहुंचाने को वर्जनीय और पाप बताता है।

धर्म का पालन या न पालन करना यह मनुष्य के विवेक पर और उनके बड़ो द्वारा दिये अच्छे संस्कारो पर निर्भर करता है।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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