प्रश्न – आप शबरीमाला वाले विवाद पर क्या कहना चाहती है?क्या आप मानती है कि स्त्रियों को यँहा जाना चाहिए?या ये सब एक साजिश है?

उत्तर – आत्मीय भाई, मैं स्वयं एक स्त्री हूँ, फिर भी बिना पक्षपात के इस विषय पर अपना मत देना चाहूंगी।

मन्दिर बनाने के पीछे एक उद्देश्य होता है कि मन्दिर तांत्रिक होगा या मांत्रिक? साधारणतया मांत्रिक मन्दिर में किसी के भी प्रवेश को प्रतिबंधित नहीं किया जाता है।

तांत्रिक और गुह्य साधना के लिए बनाए साधनात्मक गर्भ ग्रह सबके लिए उपलब्ध नहीं होते।

शबरीमला मन्दिर भगवान अयप्पा का है। धार्मिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान भोलेनाथ भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए थे और इसी के प्रभाव से एक बच्चे का जन्म हुआ जिसे उन्होंने पंपा नदी के तट पर छोड़ दिया। शंकर और हरि से जन्मे इस पुत्र को हरिहर पुत्र भी कहते हैं। इस दौरान राजा राजशेखरा ने उन्हें 12 सालों तक पाला। बाद में अपनी माता के लिए शेरनी का दूध लाने जंगल गए अयप्पा ने राक्षसी महिषि का भी वध किया।

यह मंदिर पश्चिमी घाटी में पहाड़ियों की श्रृंखला सह्याद्रि के बीच में स्थित है। घने जंगलों, ऊंची पहाड़ियों और तरह-तरह के जानवरों को पार करके यहां पहुंचना होता है इसीलिए यहां अधिक दिनों तक कोई ठहरता नहीं है। यहां आने का एक खास मौसम और समय होता है। जो लोग *यहां तीर्थयात्रा के उद्देश्य से आते हैं उन्हें इकतालीस दिनों का कठिन वृहताम का पालन करना होता है*। तीर्थयात्रा में श्रद्धालुओं को ऑक्सीजन से लेकर प्रसाद के प्रीपेड कूपन तक उपलब्ध कराए जाते हैं। दरअसल, मंदिर नौ सौ चौदह मीटर की ऊंचाई पर है और केवल पैदल ही वहां पहुंचा जा सकता है।

पंद्रह नवंबर का मंडलम और चौदह जनवरी की मकर विलक्कू, ये सबरीमाला के प्रमुख उत्सव हैं। मलयालम पंचांग के पहले पांच दिनों और विशु माह यानी अप्रैल में ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं। इस मंदिर में सभी जाति के लोग जा सकते हैं, लेकिन *दस साल से पचास साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर मनाही है।* सबरीमाला में स्थित इस मंदिर प्रबंधन का कार्य इस समय त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड देखती है। अतः *इस मंदिर में 50 वर्ष से ऊपर की महिलाएं इकतालीस दिनों का कठिन वृहताम व्रत अनुष्ठान करके मन्दिर में प्रवेश कर सकती है।*

18 पावन सीढ़ियां
चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पावन सीढ़ियों को पार करना पड़ता है, जिनके अलग-अलग अर्थ भी बताए गए हैं। पहली पांच सीढ़ियों को मनुष्य की पांच इन्द्रियों से जोड़ा जाता है। इसके बाद वाली 8 सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से जोड़ा जाता है। अगली तीन सीढ़ियों को मानवीय गुण और आखिर दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना जाता है।

इस मंदिर में प्रवेश हेतु कोर्ट जाना, फिर सुप्रीम कोर्ट का आदेश आना घटनाक्रम एक राजनीति से प्रेरित साजिश का हिस्सा है। धर्मान्तरण केरल में तेजी से चल रहा है। हिंदू मंदिरों को विवादों में डालकर बचे खुचे हिंदुओ को व्यथित करके की सुनियोजित योजना है। जो संगठन मंदिर में प्रवेश हेतु कोर्ट की लड़ाई लड़ रहा है, उनके घर जाइये तो आप पाएंगे वो लोग त्रिकाल संध्या और जप-तप करते ही नहीं है।

मन्दिर में प्रवेश हेतू उन्हें ही लड़ाई लड़नी करने का अधिकार है, जो हिन्दू धर्म की वसीयत विरासत के साथ धर्म के मर्म की समझ रखता हो, जिसका जीवन लोककल्याणार्थ और परपीड़ा निवारण में लगा हो।

व्यर्थ में टाइम पास हेतु किसी की भी धर्म आस्था पर राजनीति करना सर्वथा अनुचित है।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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