दशहरे का ध्यान- मर्यादा पुरुषोत्तम का ध्यान

ध्यान – रामचरितमानस अर्थात् श्रीराम का चरित्र मन में बसाना, अपने आचरण में मर्यादा का वरण करना। चित्त रुपी सीता श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम के साथ होनी चाहिए, लेकिन यदि सूक्ष्म या स्थूल अहंकार रूपी रावण ने चित्त का हरण कर लिया है तो अहंकार का नाश करना और मर्यादा का पुनः वरण करना। रामराज्य मन में पुनः स्थापित करना।

पहले हनुमान की भूमिका में सीता का पता लगाइये, ध्यान की गहराई में पता करिये क़ि हमारा चित्त वास्तव में कहाँ है। कितने लोगों के प्रति ईर्ष्या है, ईर्ष्या-द्वेष में कहीं चित्त तो नहीं लगा? कहीं किसी प्रकार का स्थूल या सूक्ष्म अहंकार तो हमारे अंदर तो नहीं, स्वयं की प्रसंशा सुनने की चाह तो नहीं? कहीं किसी भी प्रकार का द्वेष, मद, लोभ, दम्भ तो नहीं? मन में ऐसा तो कुछ नहीं जिसे सद्गुरु नहीं चाहते क़ि वो हमारे अंदर हो? स्वयं की समीक्षा कर अपने दस बुराईयों का एक रावण ध्यान में बनाइये। फ़िर भावना कीजिये हमारे सद्गुरु श्रीराम के रूप में धनुष लेकर आये हैं।  और पहले तीर से वो मन की ईर्ष्या-द्वेष रुपी नाभि पर वार कर उसे नष्ट कर रहे हैं। बारी बारी सभी बुराईयों को उन्होंने नष्ट कर दिया।

अब भावना कीजिये हम विकार मुक्त हो गए हैं, हमारे अंदर राम राज्य अर्थात् आत्मीयता-सम्वेदना का विस्तार हो गया है। हमारे आचरण व्यवहार में मर्यादा स्थापित हो गयी है। मन बहुत हल्का लग रहा है, हृदय का सारा बोझ मिट गया है। जिसने जिसने हमारा जाने अंजाने में बुरा किया उसे हमने माफ़ कर दिए हैं, जिसका हमने जाने अंजाने में बुरा किया उसने हमें माफ़ कर दिया है। निर्लिप्त निर्विकार भाव सम्वेदना से भरी हमारी आत्मा का पुनर्जन्म हो गया है। हम सब अशुभ भूल गए हैं। अब हमारा चित्त पूर्ण रूपेण सद्गुरु श्रीराम के चरणों में स्थित है। अब समस्त विश्व हमारा मित्र है, हम विश्वामित्र बन गए हैं। इस भाव में खो जाइये।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

आपको और आपके परिवार को विजयादशमी की शुभ कामनाएँ। मन को विजय करके राम चरित्र मन में बसाने की शुभकामनाएं

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