ज्ञानरथ – के जीवंत अनुभव – हारिये न हिम्मत

ज्ञानरथ – के जीवंत अनुभव*

गुरूदेव का प्रिय कार्य है साहित्य विस्तार, अतः ए के द्विवेदी बाबूजी 81 वर्ष की उम्र में भी ज्ञानरथ चलाते हैं। एक सहयोगी भाई भी उनके साथ रहते है, 4 से 5 चेयर साथ रखते है ताकि कुछ लोग बैठ के वहीं साहित्य पढ़ सकें।

एक दिन की घटना है कि एक लगभग 30 से 35 वर्ष का हैरान परेशान युवक वहां आकर चेयर पर बैठ गया। बाबूजी ने आत्मियता से उससे पूँछा बेटे कोई परेशानी है क्या, उस युवक ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी परेशानी भांपते हुए उसे पॉकेट पुस्तक – *हारिये न हिम्मत* दे दी। बोला बेटे पुस्तक पढ़ने के कोई चार्जेज़ नहीं है। वह युवक पुस्तक पढ़ता रहा फ़िर उठा और उस पुस्तक का मूल्य 4 रुपये देकर खरीद लिया और वहां से चला गया।

लगभग 15 दिन बाद वही युवक आया और बाबूजी के पांव पकड़ कर रोने लगा। बाबूजी ने पूँछा बेटा क्या हुआ क्यों रो रहे हो?

उस युवक ने बताया कि 15 दिन पहले मैं गंगा जी मे कूदकर आत्महत्या करने के लिए गंगा के पुल जा रहा था। ऑटो के इंतज़ार के लिए आपके पास बैठ गया और आपने मुझे *हारिये न हिम्मत* पुस्तक दे दी। उसे पढ़कर न जाने मुझे कैसे भीतर से जीवन को नए सिरे से जीने की आवाज आई। मैं घर लौट गया और मरने का विचार छोड़कर अपने जीवन की विकट परिस्थितियों को सुलझाने में लग गया। समस्या तो खत्म नहीं हुई है लेकिन इन समस्याओं से जूझने की शक्ति मिल गयी है।

आपने न केवल मेरी जान बचाई, अपितु मेरे तीन छोटे बच्चों और मेरी पत्नी की भी जान बचाई, मेरी पत्नी पढ़ी लिखी नहीं है और डरपोक भी है, वो बच्चो की जिम्मेदारी अकेले नहीं उठा पाती, वो भी जान दे देती। एक साथ पांच जान आपकी दी इस पुस्तक ने बचा दी।

81 वर्ष की उम्र में जहां लोग रिटायर होकर घर बैठते हैं और मौत का इंतज़ार करते है, वहां 81 वर्ष की उम्र में ज्ञानरथ चलाकर युगसाहित्य से प्रेरणा देकर ए के द्विवेदी बाबूजी लोगों को जीवन जीना सीखा रहे हैं।

ज्ञानरथ रथ अर्थ कमाने के लिए नहीं चलता, ज्ञानरथ जीवन बचाने के लिए चलता है।

ज्ञानरथ रथ युगसाहित्य के रूप में लोगों में प्राण संचार करने के लिए चलता है।

ऐसी ही जीवंत प्रेरणाओं को लेकर पुनः मिलेंगे🙏🏻 तबतक के लिए नमस्कार।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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