चेस के खेल से शिक्षण

*चेस के खेल से शिक्षण*

जिंदगी चेस का खेल है, जो मनःस्थिति और परिस्थिति दो के बीच खेला जाता है।

मनःस्थिति को हर हालत में राजा आत्मा को आत्मबल रूपी वज़ीर की मदद से बचाना होता है।

ये एक ऐसा खेल है जो चाहो या न चाहो खेलना ही पड़ेगा। अतः चैतन्य जागरूक होना पड़ता है। मनःस्थिति के सभी प्यादे बुद्धि, चित्त, अहंकार, अच्छी या बुरी भावनाएं, अहसास, अनुभूति, अनुभव इत्यादि सबकुछ के प्रति जागरुक रहते हुए वज़ीर आत्मबल से परिस्थिति की चालों का सामना करना पड़ता है।

उदाहरण – कुशल गृहणी बरसात के मौसम में वर्षा का अंदाजा लगते ही बाहर के कपड़े अंदर रख लेती है, वर्षा से कम नुकसान हो ऐसी व्यवस्था करती है। घर वालो को पकौड़े भी बना के खिला देती है। अर्थात परिस्थिति की चाल को समझ के मनःस्थिति की चाल को पहले ही चल देती है।

इसी तरह कुशल किसान और सिद्ध साधक करते है।

परिस्थिति रूप में अंगुलिमाल की चाल से पहले ही भगवान बुद्ध ने अपने को एकाग्र करके अपनी विचारशक्ति और आत्मबल का सूक्ष्म प्रहार अंगुलिमाल पर कर दिया।

जो चैतन्य जागरूक मनःस्थिति के लिए है वो विजेता है।

चेस में दोनों तरफ उतने ही घोड़े हाथी ऊंट और वज़ीर होते है, लेकिन जो कुशल है वो ही जीतता है, जो दूसरे की अगली चाल को समझ के अपनी चाल चलता है।

गुरुदेब की पुस्तक – *मन के हारे हार है और मन के जीते जीत* इसी हेतु है।

चन्द्रायण साधना आत्मबल के संग्रहण में सहायक है और युगऋषि के साहित्य का स्वाध्याय जीवन में परिस्थिति की चालों को समझने में सहायता करता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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