गायत्री मंत्र गुरुदीक्षा

संसार मे चलने के लिए जिस प्रकार दो पैरों की जरूरत होती है, वैसे ही अध्यात्म के दो पैर होते हैं- श्रद्धा और विश्वास।

गुरुदीक्षा एक प्रकार का आध्यात्मिक विवाह है। जिसमें दो व्यक्ति एक पवित्र उत्तरदायित्व को ओढ़ते हैं। गुरु अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेता है कि शिष्य की आत्मा को ऊंचा उठाने में कोई कसर न रखूँगा। शिष्य अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेता है कि गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा रखता हुआ उनके आदेश को शिरोधार्य करूंगा। विवाह और दीक्षा में यद्यपि भौतिक दृष्टि से बहुत अन्तर नहीं है। दो आत्माएं जीवन भर के लिए पूरी ईमानदारी से एक दूसरे की उन्नति और सहायता का व्रत लेती हैं यही दीक्षा कहलाती है पति पत्नी की इस प्रतिज्ञा को विवाह, और गुरु शिष्य की प्रतिज्ञा को दीक्षा, मित्र 2 की प्रतिज्ञा को मैत्री या “पगड़ी पलटना” कहते हैं। इस प्रकार के व्रत बन्धन के पश्चात् अधिक जिम्मेदारी से कर्तव्य पालन के भाव दृढ़ होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि शिष्य के पाप पुण्यों का दसवाँ भाग गुरु को भी मिलता है। कारण स्पष्ट है कि शिष्य के निर्माण में गुरु का भारी उत्तरदायित्व उन कार्यों में उसे भागीदार बना देता है।

गायत्री साधना के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। इस कार्य के लिए ब्रह्मनिष्ठ, आत्मदर्शी, का वरण करना चाहिए। कोई श्रेष्ठ, अनुभवी, आत्मिक दृष्टि वाले सदाचारी व्यक्ति अपने समीप न हों तो दूरस्थ व्यक्तियों से भी यह हो सकता है, या  गुरु दीक्षा सूक्ष्म शरीर धारी उच्च आध्यात्मिक सद्गुरु से ली जा सकती है जिन्होंने 24 लाख के 24 गायत्री महामन्त्र जप अनुष्ठान महापुरुश्चरण किये हों। शरीर दूर दूर रहते हुए भी आत्माओं के लिए दूरी का कोई प्रश्न नहीं। दूरस्थ सूक्ष्म शरीर धारी उसी प्रकार एक दूसरे की समीपता कर सकती हैं जिस प्रकार पास पास रहते हुए दो व्यक्ति आपस से निकटता अनुभव करते हैं। यदि ऐसी, दूरस्थ गुरु की भी व्यवस्था न हो सके, तो किसी सूक्ष्म शरीर धारी महापुरुष को गुरुवरण किया जा सकता है। एकलव्य, कबीर आदि ने दूरस्थ व्यक्तियों को गुरु वरण करके अपने आप दीक्षा ले ली थी। इस प्रकार के दूरस्थ या सूक्ष्मशरीर धारी गुरुओं के बारे में शिष्य को ऐसा भाव मन में धारण करना पड़ता है कि वे अपने समीप हैं, प्रसन्न हैं और गुरु के समस्त उत्तरदायित्वों को पूरा कर रहे हैं।

दीक्षा के समय गुरु शिष्य को एक प्रधान विचार देते हैं। यह विचार-मंत्र-कहलाता है। मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ, सर्वोपरि मंत्र गायत्री है, क्योंकि इसमें ज्ञान-साँसारिक ज्ञान, विज्ञान-आध्यात्मिक ज्ञान इस प्रकार भरा हुआ है जैसे बिन्दु में सिन्धु। जल की एक बूँद में वे सब तत्व मौजूद होते हैं जो समुद्र की विशाल जल राशि में होते हैं। बीज में वृक्ष का संपूर्ण आधार छिपा होता है, वीर्य की एक बूँद में सारे शरीर का ढाँचा सन्निहित रहता है। गायत्री मंत्र 24 अक्षर का है पर इसके गर्भ में ज्ञान विज्ञान के अनन्त भण्डागार छिपे पड़े हैं। इससे बड़ा कोई मंत्र नहीं, इसलिए इस वेदमाता को गुरु मंत्र के रूप में अन्तस्तल में धारण करना अधिक मंगलमय होता है। दीक्षा और गुरु मंत्र ग्रहण करने की विधि के साथ आरंभ की हुई गायत्री उपासना विशेष फलवती होती है, ऐसा शास्त्र का मत है।

गायत्री परिवार में गुरुदीक्षा के क्रम समस्त शक्तिपीठ में कराए जाते हैं। यदि सम्भव हो तो शांतिकुंज हरिद्वार या तपोभूमि मथुरा के दिव्य प्रांगण में गुरुचेतना से जुड़ने हेतु दीक्षा लें। यदि दूर न जा सकें तो अपने नजदीकी शक्तिपीठ से सम्पर्क करें।

 इसमें गुरुदीक्षा में गुरुचेतना का प्रतिनिधि कार्यकर्ता सूक्ष्मशरीर धारी परम् पूज्य गुरुदेव युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आह्वाहन करता है। प्रतिनिधि एक तरह से पोस्टमैन की भूमिका निभाता है। गुरु का संदेश दीक्षा लेने वाले शिष्य को समझाता है, मन्त्र कैसे जपना है, उपासना, साधना, आराधना में क्या करना है इत्यादि मार्गदर्शन देता है।

गुरुदीक्षा के वक्त कुछ पुस्तकों, माला, रुद्राक्ष, गुरुदेव, माताजी और गायत्री माता का चित्र, मन्त्र दुपट्टा का एक गुरुदीक्षा सेट मिलता है। इसे लेकर ही गुरुदीक्षा में बैठते हैं।

गुरुदीक्षा की प्रोसेस में करीब आधे से एक घण्टे का समय लगता है, उसके बाद यज्ञ करने शिष्य गुरुमुखी होकर बैठता है। एक बुराई दक्षिणा स्वरूप छोड़ता है और गुरुदीक्षा के साथ एक अच्छाई से जुड़ने का संकल्प लेता है।

गुरुदीक्षा होने के बाद, आपके गुरु युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी बन जाते हैं। जिन्होंने 24 लाख के 24 गायत्री मंत्र अनुष्ठान किये हैं, कई वर्षों तक हिमालय में कठोर तप किया है। 3200 से ज्यादा पुस्तकों के लेखक हैं। युगनिर्माण योजना और विचार क्रांति अभियान के उद्घोषक और संरक्षक है। जिनकी छत्र छाया में 11 करोड़ लोग उनसे दीक्षित हैं।

जब भी गायत्री जप से पूर्व आप समर्पित होकर भावपूर्ण उनका आह्वाहन गुरुमंत्रो से करते हैं तो वो गायत्री मन्त्र का उत्कीलन, शाप विमोचन स्वतः कर देते हैं साथ ही दशों दिशाओं से साधना को सुरक्षा प्रदान करते है। शिष्य की चेतना को ऊंचा उठाते रहते हैं।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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