क्या भगवान है? क्या आप इसका प्रमाण दे सकती हो

(ईषना और जॉन का संवाद, ऑफिस में सब जानते थे कि ईषना आध्यात्मिक है और आये दिन कोई न कोई व्रत उपवास साधना करती रहती है। आज जॉन की बर्थडे पार्टी थी सब पिज़्ज़ा और कोल्डड्रिंक एन्जॉय कर रहे थे। हमेशा की तरह ईषना ने कहा मैं कुछ नहीं खाऊँगी मेरा व्रत है। ईषना को नीचा दिखाने हेतु जॉन ने ईषना से प्रश्न पूंछना शुरू किया और सब जॉन की तार्किक बुद्धि से परिचित थे, तो कुछ आज ईषना और जॉन के संवाद में निंदारस ढूंढ रहे थे तो कुछ ज्ञान तलाश रहे थे।)

जॉन – क्या भगवान है? क्या आप इसका प्रमाण दे सकती हो? भगवान कहाँ है?*

ईषना- क्या तुम हो? इसका प्रमाण दे सकते हो? तुम शरीर के किस हिस्से में हो और कहां हो?

जॉन – ये कैसा सवाल है? तुम प्रश्न का उत्तर न देकर उल्टा प्रश्न क्यूँ कर रही हो?

ईषना – इस प्रश्न में ही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है? कृपया बताओ कि तुम कहाँ हो?

जॉन – मैं क्या तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा? क्या तुम्हारी नज़र कमज़ोर है?

ईषना – मुझे तुम्हारा शरीर दिख रहा है, जो तुम्हारे मरने के बाद भी दिखेगा, जैसे जो शरीर मेरा तुम्हे दिख रहा है, वो मेरे मरने के बाद भी तुम्हे दिखेगा? हमें भी भगवान की सृष्टि दिखाई दे रहा है, लेकिन भगवान नहीं दिख रहे?

ये बताओ मैं और तुम कहाँ है? इसको प्रमाणित करो। जिसके कारण तुम जीवित हैं वो तत्व दिखाओ? जो इस पल में उपस्थित है उसको दिखाओ वो कहाँ है?

जॉन – अरे यार इसे ऐसे समझो की यह शरीर हार्डवेयर है और हम सॉफ्टवेयर हैं। जो दिख तो नहीं रहा , इसे छू भी नहीं सकते लेकिन इसी के कारण यह शरीर रुपी हार्डवेयर फंक्शन कर रहा है।

ईषना – तो इसी तरह इस हार्डवेयर स्थूल सृष्टि का कोई ऐसा ही सॉफ्टवेयर होगा जिसके कारण यह सृष्टि फंक्शन कर रही है? क्या ये तुम मानते हो? क्या उसी को भगवान तो नहीं कहते?

जॉन – हांजी, विचार में पड़ गया। लेकिन….

(जॉन के साथ साथ सभी अन्य लोग भी सोच में पड़ गए, शायद मैं क्या हूँ? इस शरीर से परे हूँ? जिसके कारण जीवित हूँ? यह प्रश्न सबके दिमाग़ में एक साथ कौंध उठा)

ईषना – (जॉन की कोल्डड्रिंक की ओर इशारा करते हुए) जॉन, इस कोल्ड्रिंक में शुगर है क्या तुम इसे प्रमाणित कर सकते हो? क्या तुम मुझे दिखा सकते हो? या इस पिज़्ज़ा में नमक है? क्या इसे दिखा सकते हो? ये प्रमाणित कर सकते हो?

जॉन – अरे दिखाना सम्भव नहीं है, इसे पीकर और इसे खाकर मीठे और नमकीन की अनुभूति तो कर सकती हो, लेकिन नमक और चीनी इसमें से निकाल कर नहीं दिखा सकता। इसे प्रमाणित तर्क से नहीं कर सकता। एक ही रास्ता है इसे चखना।

साथ ही मेरे शरीर मे मैं कहाँ हूँ यह भी दिखा या तर्क द्वारा बता नहीं सकता।

शायद कुछ मुझे समझ आ रहा है, लेकिन एक तरफ मैं सुलझ रहा हूँ तो दूसरी तरफ मैं कुछ उलझ रहा हूँ। मेरा दिमाग़ अब भगवान से पहले स्वयं को जानने के प्रश्न कर रहा है कि मैं क्या हूँ?

ईषना – तुम अब सही प्रश्न पर हो, पहले जानो कि तुम क्या हो? कहाँ से आये हो कहां को जाओगे? ये सब ज्ञान बाहर दृष्टि से देखने पर न मिलेगा, इसके लिए भीतर देखना पड़ेगा। अंतर्जगत में उतरना पड़ेगा।

चलो जल्दी कोल्डड्रिंक पिज़्ज़ा खत्म करो और नीचे चलो, ब्रेक आवर पूरा हो गया।

जॉन – ईषना यह चर्चा तो शुरू मैंने तुम्हें तर्क द्वारा नीचे दिखाने के लिये शुरू की थी। लेकिन इस चर्चा के बाद तुम मेरी क्या हम सबकी नजरों में ऊंची उठ गई हो। इस विषय पर कल ऑफिस ब्रेक पर चर्चा करेंगे।

(हां ईषना सबने एक साथ कहा, हम इस विषय पर और चर्चा करना चाहेंगे)

ईषना – हां जरूर क्यों नहीं, लेकिन उससे पहले मैं यह सलाह दूंगी क़ि तुम लोग दो छोटी पुस्तक *सुप्रसिद्ध अध्यात्म वैज्ञानिक युगऋषि श्रीराम शर्मा द्वारा रचित* पढ़कर आना जिसका पीडीएफ ऑनलाइन फ्री उपलब्ध है। क्योंकि यदि हम सब एक साथ पढ़कर आएंगे तो चर्चा प्रभावशाली होगी, अन्यथा आधारहीन हो जाएगी।

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार

2- मैं क्या हूँ

http://literature.awgp.org/book/adhayatm_vidhya_ka_pravesh_dwar/v1.1

http://literature.awgp.org/book/Main_Kya_Hun/v4

http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Mai_Kya_Hun_Hindi

(सबने सहमति जताई और अपनी अपनी डेस्क पर काम करने में लग गए, लेकिन साथ ही आज सबके मन मे *मैं क्या हूँ?* प्रश्न घूम रहा था)

श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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