कविता – हमारे कर्म में प्रभु, अपनी कृपा मिला देना।

कविता – हमारे कर्म में प्रभु,
 *अपनी कृपा मिला देना*।

कर्म मैं करूँ प्रभु,
कृपा तुम कर देना,
सङ्कल्प मैं लूँ प्रभु,
प्रभु शक्ति तुम दे देना।

विरोधी खड़े हैं,
मेरे काम मे रोड़ा अटकाने को,
आलोचक पीछे पड़े हैं,
मुझे राह से भटकाने को,
रोड़े का पत्थर जब तोड़ने का प्रयास करूँ,
शक्ति तुम दे देना,
नदी बन मैं निकलूँ,
प्रभु समुद्र तक तुम पहुंचा देना।

हज़ारों चीज़ें है प्रभु,
मेरा ध्यान भटकाने को,
हज़ारों विरोधी है मेरे,
मुझे बहकाने और भटकाने को,
मैं घण्टों ध्यान मैं बैठूँ,
बैठने की शक्ति तुम दे देना,
ध्यान का प्रयास मैं करूँ,
प्रभु ध्यान तुम लगवा देना।

खेत तैयार कर बीज मैं बोऊं
बीज को पौधा तुम बना देना,
कर्मों की खेती मैं करूँ,
उस फ़सल को तुम पका देना,
नित्य प्रयास मैं करूँ,
सफल तुम कर देना,
कर्म मैं करूँ प्रभु,
कृपा तुम कर देना।

उद्यम मैं करूँ प्रभु,
धन वैभव तुम दे देना,
पुरुषार्थ मैं करूँ प्रभु,
शक्ति तुम सतत दे देना,
भक्ति मैं करूँ प्रभु,
कृपा तुम कर देना,
प्रयास मैं करूँ प्रभु,
सफल तुम बना देना,
धन वैभव और जीवन के सदुपयोग की,
सद्बुद्धि तुम सतत देना।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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