कविता – बुद्ध पूर्णिमा – 18 मई

बीमार और वृद्ध को देखकर,
उनके मन में प्रश्न उठ गया,
लाश को मरघट की ओर जाते देखकर,
उनके मन में प्रश्न उठ गया।

ऐसा क्यों? ऐसा क्यों?
बार बार मन पूँछ रहा था,
राज्य पुरोहित भी,
इस प्रश्न का उत्तर देने में,
सँकोच कर रहा था।

महल छोड़ कर,
प्रश्नों के उत्तर की तलाश में निकल गए,
स्वयं को भूलकर,
गहन ध्यान में उतर गए।

स्वयं से कहा,
जब तक उत्तर न मिलेगा,
मैं यहां से,
किंचित मात्र भी न हिलूँगा,
उस परमात्मा के लिए,
अनन्त प्रतीक्षा करूँगा।

जब उन प्रश्नो पर,
ध्यान आत्म केंद्रित हुआ,
आत्म ऊर्जा का,
उस प्रश्नों पर सम्प्रेषण हुआ,

फ़िर भीतर एक विष्फोट हुआ,
अनन्त चेतना से,
उनकी चेतना का मिलन हुआ।

स्थूल जगत का,
सूक्ष्म जगत से सम्पर्क हुआ,
समस्त प्रश्नों का,
सूक्ष्म जगत से समाधान मिला,

बुद्धत्व जाग गया,
अंतर्गत प्रकाशित हो गया,
दुनियाँ के समस्त प्रश्नों का,
समाधान स्वतः मिल गया।

लेक़िन क्या यह बुद्धत्व,
हममें भी जग सकता है?
क्या हमारा सम्पर्क भी,
उस परा चेतना से हो सकता है?

बिल्कुल हो सकता है,
परा चेतना से सम्पर्क,
बस उसे पाने के लिए,
ले लो एक दृढ़ संकल्प।

बस बुद्ध सी विकलता को,
स्वयं में उभार लो,
उसे पाने के लिए,
अपना सबकुछ दाँव पर लगा दो।

जब तक न मिले,
ध्यानस्थ हो जाओ,
उसे पाने के लिए,
स्वयं को भूल जाओ।

जब “मैं” न रहेगा,
तब “वह” ही शेष बचेगा,
तुम्हारे अस्तित्व में से ही,
फ़िर “बुद्धत्व” उभरेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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