कविता – दृष्टि – सत, रज, तम के आधीन

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि,
का राज़ है बड़ा गहरा,
सत रज तम गुणों का,
दृष्टि पर है बड़ा पहरा।

तमोगुण से भरा मन,
मोह और प्रमाद में भटकता,
तम का गहन अंधेरा,
निज व्यक्तित्व में छाया रहता,

कितना भी बड़ा हो,
तम का गहन अंधेरा,
एक सात्विक कर्म के प्रकाश से,
मिट जाता है वह अंधेरा।

रजोगुण से भरा मन,
भोग विलास में रमता,
वासना-कामना के जाल में,
नित्य उलझता रहता।

कितना भी मन उलझा-बिखरा हो,
रज की मोह माया में,
इसका अस्तित्व भी मिट जाता है,
एक सात्विक कर्म प्रकाश से।

सतोगुण से भरे मन में,
सदा आनन्द निवास करता,
उच्चतर लोकों में निवास का,
सतोगुणी मन अधिकारी बन जाता।

परम जागरण का सूत्र,
जो मनुष्य जान जाता,
आत्मबोध कर वह योगी,
परमानन्द में रम जाता।

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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