आत्मियता विस्तार ही सच्चा धर्म है। लोकसेवा ही तपस्वी योगी की पहचान है।

धर्म-तप से जब सँस्कार जुड़ा,
तो सृजन हुआ, लोकसेवी बने,
धर्म-तप से जब अहंकार जुड़ा,
तो विध्वंस हुआ, आतंकी बने।

सँस्कार से बने लोकसेवी,
आत्मियता प्रेम भाव से लोकसेवा में जुटे,
अहंकार से बने आतंकी,
वैमनस्यता घृणा भाव से जीवन छिनने में जुटे।

आत्मियता विस्तार ही सच्चा धर्म है।
लोकसेवा ही तपस्वी योगी की पहचान है।

श्वेता, DIYA

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