अनुष्ठान का नाम – राष्ट्र पुष्टिकरण सामूहिक चांद्रायण साधना

21 मार्च फाल्गुन पूर्णिमा से 19 अप्रैल चैत्र पूर्णिमा तक*🙏

*पापों के प्रायश्चित्त के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वोपरि वर्णन किया गया है*।

प्रायश्रित्त शब्द प्रायः+चित्त शब्दों से मिल कर बना है। इसके दो अर्थ होते है।

प्रायः पापं विजानीयात् चित्तं वै तद्विशोभनम्।

प्रायोनाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते॥

(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि। प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।

(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय। प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।

दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना। तप का यही उद्देश्य भी है। चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है। चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना। इस महाव्रत के कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं –

(1) पिपीलिका मध्य चान्द्रायण।

एकैकं ह्रासयेत पिण्डं कृष्ण शुलेच वर्धवेत।

उपस्पृशंस्त्रिषवणमेतच्चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- पूर्णमासी को 15ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए। चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे। इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।

(2) यव मध्य चान्द्रायण –

प्तमेव विधि कृत्स्न माचरेद्यवमध्यमे।

शक्ल पक्षादि नियतश्चरंश्चान्द्रायणं व्रतम्॥

अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें। फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे। इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।

(3) यति चान्द्रायण

अष्टौ अष्टौ समश्नीयात् पिण्डन् माध्यन्दिने स्थिते।

नियतात्मा हविष्याशी यति चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें। इसे यति चांद्रायण कहते है। इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।

(4) शिशु चान्द्रायण

बतुरः प्रातरश्नीयात् पिण्डान् विप्रः समाहितः।

चतुरोऽख्त मिते सूर्ये शुशुचान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें। इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।

(5) मासपरायण – चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का(दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें। भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।

तिथि की वृद्धि तथा क्षय हो जाने पर ग्रास की भी बुद्धि तथा कमी हो जाती है। ग्रास का प्रमाण मोर के अड्डे, मुर्गी के अड्डे, तथा बड़े आँवले के बराबर माना गया है। बड़ा आँवला और मुर्गी के अंडे के बराबर प्रमाण तो साधारण बड़े ग्रास जैसा ही है। परन्तु मोर का अंडा काफी बड़ा होता है। एक अच्छी बाटी एक मोर के अंडे के बराबर ही होती है। इतना आहार लेकर तो आसानी से रहा जा सकता है। पिण्ड शब्द का अर्थ ग्रास भी किया जाता है और गोला भी। गोला से रोटी बनाने की लोई से अर्थ लिया जाता हैं यह बड़ी लोई या मोर के अंडे क प्रमाण निर्बल मन वाले लोगों के लिए भले ही ठीक हो। पर साधारणतः पिण्ड का अर्थ ग्रास ही लिया जाता है।

शाम को रोटी के साथ लौकी की सब्जी या दाल लें। सब्जी एवं दाल में केवल शुद्ध घी, सेंधा नमक, जीरा, धनिया और टमाटर डाल सकते हैं। एक वक़्त यदि ग्रास वाला भोजन ले रहे हैं दो दूसरे समय किसी एक फ़ल का रसाहार लें या दूध लें या छाछ लें।

जल कम से कम 6 से 8 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है। अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।

चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए। भूमि शयन, एवं ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है।

अनुष्ठान – एक मास में एक सवा लाख जप अनुष्ठान करें या कम से कम तीन 24 हज़ार के अनुष्ठान करें तो उत्तम है। इतना न सधे तो कम से कम दो 24 हज़ार के या एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।

यदि जप तप ध्यान प्राणायाम योग और स्वाध्याय सन्तुलित हुआ तो कमज़ोरी लगने का कोई सवाल ही उतपन्न न होगा। लेकिन यदि इसमें व्यतिक्रम हुआ अर्थात व्रत हुआ बाकी न हुआ किसी कारण वश किसी दिन तो कमज़ोरी आ सकती है। तो ऐसी अवस्था मे ग्लूकोज़ पानी पी लें या किसी फल का रसाहार ले लें।

प्रत्येक ग्रास का प्रथम गायत्री से अनुमंत्रण करे फिर ॐ। भूः। भूवः। स्वः। महः। जनः। तपः। सत्यं। यशः। श्रीः। अर्क। ईट। ओजः । तेजः। पुरुष। धर्म। शिवः इनके प्रारम्भ में ‘ॐ’ और अन्तः ‘नमः स्वाहा’ संयुक्त करके उस मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रास का भक्षण करें यथा- ‘ॐ सत्यं नमः स्वाहा’। ऊपर पंद्रह मंत्र लिखे हैं। इसमें से उतने ही प्रयोग होंगे जितने कि ग्रास भक्षण किये जायेंगे, जैसे चतुर्थी तिथि को चार ग्रास लेने हैं तो (1) ॐ नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (3) ॐ भुवः नमः स्वाहा (4) ॐ स्वः नमः स्वाहा इन चार मंत्रों के साथ एक एक ग्रास ग्रहण किया जायगा।

व्रत की समाप्ति पर *मां भगवती भोजनालय में दान दें* तथा सत्साहित्य और मन्त्रलेखन पुस्तिका ज्ञान दान में बांटे है।

Reference Article – http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/November/v2.14

– March 19, 2019 No comments: 

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अश्लीलता दहन और नशा उन्मूलन पर्व होली की अग्रिम बधाई

*अश्लीलता दहन और नशा उन्मूलन पर्व होली की अग्रिम बधाई।*
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*होली के त्यौहार की बहुत बहुत बधाई*

👉🏼प्राचीन कथानुसार भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे और प्रजा पर मनमाना अत्याचार करते थे। वह विष्णु के विरोधी थे जबकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।

प्रह्लाद के पिता ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका अपने अधर्मी भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई और एक निष्पाप बालक प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी, परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई।

🔥अधर्म और बुराई की हार हुई और धर्म और अच्छाई की जीत हुई।🔥

👉🏼एक वक़्त गांधी जी के आह्वाहन पर विदेशी सामानों की होली जलाई गई थी और स्वदेशी को अपनाने का संकल्प लिया गया था।

*प्रह्लाद ने उस वक्त फ़ैली बुराई से लोहा लिया, और अब वक़्त आ गया है कि हम सबको वर्तमान समाज में फ़ैली बुराइयों के दहन करना है। वर्तमान समय की दो भीषण समस्याएं हैं पहला अश्लीलता और दूसरा नशा। इन दोनों ने युवाओं को कुंठित कर दिया है और भारत माता को बेहाल कर दिया है।*

🙏🏻अखिलविश्व गायत्री परिवार आप सबका आह्वाहन करता है कि अश्लीलता दहन और नशे के उन्मूलन में जुट जाइये। 🙏🏻

होली के शुभ अवसर पर शक्तिपीठों, प्रज्ञा मंडलों पर होली मिलन समारोह आयोजित कीजिये। लोगों को आनन्द और ख़ुशी मनाने के सभ्य और सुसंस्कृत तरीक़े से आनन्द मनाना सिखाइये।

आज युवा कल्पना ही नहीं कर पाते कि बिना नशे और फ़ास्ट फ़ूड के भी पार्टी हो सकती है, उत्सव हो सकते हैं। भारतीय पकवानों और भारतीय संस्कृति से वो दूर हो गए हैं।

आप ऐसे होलीमिलन उत्सव का आयोजन करें जिसमें सबकुछ स्वदेशी हो, भारतीय व्यंजन और भारतीय वेशभूषा और भारतीय स्टाइल हो। गीत संगीत चुटकुले व्यग्य और संगीत के माध्यम से मस्ती भरी होली मनाईये। युगनिर्माण के सन्देश दीजिये। भारत की आत्मा से युवाओं को जोड़िये। ऐसा भारतीयता और युगनिर्माण का रँग लोगों के मन में लगाइए कि वो कभी भी न उतरे।

*अश्लीलता दहन और नशा उन्मूलन पर्व होली की अग्रिम बधाई।*

🔥 होलिका दहन :- होलिका गाय के गोबर के उपलों और आम की लकड़ी से बनाएं। उसमें विधिवत पूजन के बाद लोगों से गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र की आहुति डलवाएं। पूजन विधि के लिए कर्मकांड भाष्कर की मदद लें। हवन सामग्री में कपूर, ईलायची, तेजपत्ते और गिलोय मिला कर हवन करने से रोगाणु मरेंगें और आसपास रोगमुक्त वातावरण बनेगा।🔥

श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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