अध्यात्मज्ञान थोड़े से मज़ाकिया घटनाक्रम में

जब मैंने विजयमाल्या के 9000 करोड़ रुपये लेकर देश छोड़ के भागने की खबर पढ़ी, साथ में मोदी सरकार द्वारा उसकी देश विदेश की प्रॉपर्टी नीलाम करके 13000 करोड़ वसूलने की खबर पढ़ी। साथ ही ट्विटर पर विजय माल्या के रोने की खबर कि अगर लौटा दिया होता तो कम से कम 4000 करोड़ बच जाते।

मेरे आध्यात्मिक मन ने इसे आध्यात्मिक दृष्टि से देखा। देश अर्थात हमारा जीवन, कर्मभोग अर्थात परेशानियां – शारीरिक, मानसिक, आर्थिक प्रारब्ध

अब यदि इन परेशानियों से उकता कर कोई आत्महत्या(वस्तुतः शरीर हत्या होती है, क्योंकि आत्मा को कोई मार नहीं सकता) कर लेता है अर्थात देश छोड़ देता है। तो भी विजयमाल्या की तरह उसे मुक्ति नहीं मिलती। नए शरीर में पुनः उन प्रारब्ध से रुबरु होना पड़ता है।

कम से कम विजयमाल्या देश मे कर्ज चुकाता तो केवल 9 हज़ार करोड़ चुकाने पड़ते, लेकिन देश छोड़कर भागने पर 13 हज़ार करोड़ चुकाने पड़े। 4 हज़ार करोड़ ज्यादा।

अतः अपने प्रारब्ध को इसी देश या जन्म में निपट लो, प्रायश्चित का सुनिश्चित कायाकल्प विधान अपना लो। मरने पर मुक्ति नहीं मिलती 😍😍😍😍 अतः जीवन त्यागने का कोई फायदा नहीं। कमर कसो और अपना युध्द लड़ो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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